बच्चे जब भी स्कूल से घर लौटते, तो सबसे पहले बाग में जाकर खेलते। वह नरम हरी घास वाला एक बड़ा और सुन्दर बाग था, जिसके मालिक को बच्चे 'दानव' कहकर पुकारते थे। बाग में जगह-जगह सुन्दर फूल लगे हुये थे और उन्हीं के बीच आडू के पेड़ भी थे, जिनमें बड़े रसीले फल लगते थे। पेड़ की टहनियों पर बैठी चिड़ियाँ इतना मधुर संगीत गाती, कि बच्चे उसे सुनने के लिए अपना खेल तक बन्द कर देते। यहाँ हम कितने खुश है, 'वह एक-दूसरे से प्यार से कहते।'

एक दिन बाग का मालिक वापस लौट आया। वह शायद किसी अपने दोस्त से मिलने गया था। बाग में उसने बच्चों को खेलते हुये देखा।

'तुम सब यहाँ क्या कर रहे हो?' अपनी भारी आवाज में चिल्लाता हुआ बोला। यह सुनकर सारे बच्चे डर के मारे भाग गये। 'यह मेरा बाग है और सिर्फ मेरे लिए है' उसने कहा।

उसने बाग के चारों ओर ऊँची चारदीवारी बनवाई और उसके बाहर एक नोटिस बोर्ड टाँग दिया, जिसमें लिखा था, 'अन्दर आने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जायेगी।' अब बाग में बच्चों ने आना बन्द कर दिया था। बच्चे स्कूल से लौटने के बाद जब भी बाग के पास वाले रास्ते से गुजरते, बस एक-दूसरे से यही बात करते कि 'जब हम यहाँ खलते थे, तो कितने खुश थे।'

वसंत का मौसम आया। सभी जगह छोटे-छोटे फूल खिलना शुरू हो गए और नन्हीं-नन्हीं चिड़ियाँ चहकने लगी। केवल उस बाग में अभी भी जाड़ा था। बच्चों ने बाग में खेलना छोड़ दिया था, इसलिए चिड़ियों ने चहकना बन्द कर दिया और कलियों ने खिलना भी छोड़ दिया। एक खूबसूरत फूल ने मिट्टी से बाहर अपना सिर जरूर निकाला, पर जब उसने नोटिस बोर्ड देखा तो उसे बच्चों के प्रति इतनी दया आई कि वह दोबारा मिट्टी की चादर ओढ़ कर सो गया।

अगर उस बाग में कोई खुश था तो सिर्फ दो लोग – बर्फ और सर्द हवा। वसंत तो मानो बाग में आना ही भूल गया था। बर्फ की दूधिया चादर ने तो घास को पूरी तरह ढक लिया था और सर्द हवा के झोंकों से पेड़ों की हड्डियां कांप उठी थी।

'कुछ समझ में नहीं आता कि वसंत का मौसम अब तक मेरे बाग में क्यों नहीं आया,' स्वार्थी दानव ने खिड़की के बाहर अपने ठंडे सफेद बाग को देखकर कहा। उसने कहा, 'मुझे उम्मीद करनी चाहिए कि जल्दी ही मौसम बदले।' परन्तु न तो वसंत आया और न ही गर्मी। पतझड़ के मौसम में सभी बागों में रसीले फल लगे, परन्तु उस स्वार्थी दानव के बाग में एक भी फल न लगा।

एक दिन जब वह अपने पलंग पर लेटा था, तो उसे एक मधुर संगीत सुनाई पड़ा। वह संगीत इतना मधुर था कि एक बार उसे लगा मानो राजमहल के संगीतज्ञ उधर से गुजर रहे हो। दरअसल वह एक छोटी-सी चिड़िया थी, जो खिड़की के बाहर गा रही थी। क्योंकि उस दानव ने कई सालों से चिड़ियों का गाना नहीं सुना था, इसलिए वह उसे दुनिया का सबसे मधुर संगीत लग रहा था।

तभी सर्द हवाएँ चलना बन्द हो गई और बर्फ गिरना भी बन्द हो गई। उसी समय एक प्यारी-सी खुशबू की बहार खिड़की से होकर गुजरी। 'मुझे लगता है कि वसंत का मौसम आ गया,' उस स्वार्थी दानव ने कहा। फिर वह पलंग से उठकर खिड़की से बाहर की ओर झाँकने लगा।

तभी उसे एक सुन्दर-सा दृश्य दिखाई पड़ा। दीवार के एक छोटे से छेद में से कई सारे बच्चे बाग में घुस आये थे और वह अलग-अलग पेड़ की टहनियों पर बैठे हुये थे। पेड़ भी बच्चों को पाकर बेहद खुश थे और उनकी कलियाँ भी खिलखिला कर हँस रही थी। बहुत सारी चिड़ियाँ मस्ती से इधर-उधर उड़ रही थी और खुशी से चहक रही थी। रंग-बिरंगे फूल अब हरी घास के झुरमुट से सिर उठाकर झाँक रहे थे और मंद-मंद मुस्करा रहे थे। केवल बाग के एक कोने में अभी भी जाड़ा था।

बाग के इस कोने में एक छोटा-सा बच्चा खड़ा था। वह इतना छोटा था कि उसके हाथ पेड़ की टहनियों को छू नहीं पा रहे थे। वह उन्हें पकड़ने के लिए बार-बार कूद रहा था और असफल होने पर जोर-जोर से रो रहा था। वह पेड़ अभी भी बर्फ से लदा हुआ था और सर्द हवाएँ उसकी शाखाओं के बीच मानो तांडव कर रही थी।

चढ़ो बेटा, पेड़ ने उस छोटे बच्चे से कहा और अपनी शाखाओं को नीचे की ओर झुका दिया। परन्तु वह बच्चा बहुत ही छोटा था और अभी भी चढ़ नहीं पा रहा था। यह सब देखकर उस स्वार्थी दानव का दिल पिघल आया। वह उस बच्चे के पास गया और उसे उठाकर पेड़ की टहनी पर बैठा दिया। बच्चा इतना खुश था कि उसने उस स्वार्थी दानव का गाल चुम लिया। 'बच्चों अब यह तुम्हारा बाग है' इतना कहकर उस स्वार्थी दानव ने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और बाग के चारों ओर की चारदीवारी तोड़ डाली। अब बच्चे जब भी बच्चे स्कूल से घर लौटते तो उस बाग में जरूर खेलते।