आधा तीतर आधा बटेर : बेमेल स्थिति।

आँख के अन्धे गाँठ के पूरे : मूर्ख धनवान।

अधजल गगरी छलकत जाय : डींगे हाँकना।

अपनी करनी पार उतरनी : किये का फल भोगना।

आ बैल मुझे मार : जान बूझकर मुसीबत में पड़ना।

आम के आम गुठलियों के दाम : दोहरा लाभ होना।

ओछे की प्रीत बालू की भीत : नीचों का प्रेम क्षणिक।

आप भला तो जग भला : स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा।

अंधे के हाथ बटेर लगना : अपात्र को सफलता मिलना।

अन्धों में काना राजा : मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति।

आँख का अन्धा नाम नयनसुख : गुण के विरूद्ध नाम होना।

अन्धा क्या चाहे दो आँख : अपनी मनपसन्द वस्तु को पा लेना।

आग लगाकर जमालो दूर खड़ी : झगड़ा लगाकर अलग हो जाना।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला आदमी लाचार होता है।

आगे कुआँ, पीछे पगहा : अपना कोई न होना, घर का अकेला होना।

ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती : अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता।

अंधा पावै आँखें तो पतियाय : अभीष्ट की प्राप्ति होने पर विश्वास का जमना।

अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग : परस्पर संगठन या मेल न रखना।

ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर : काम करने पर उतारू होना।

आप डूबे जग डूबा : जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा ही समझता है।

आगे नाथ न पीछे पगहा : किसी तरह की जिम्मेदारी का न होना, बंधन रहित होना।

अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे : अधिकार का नाजायज लाभ अपनों को देना।

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है : अपने स्थान पर निर्बल भी स्वयं को सबल समझता है।

अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप : मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना।

अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना : निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है।

अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे : अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना।

आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ : नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया उग गई खेत : समय पर कार्य न करने पर बाद में पछताना।

आए थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास : किसी कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना।

ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डरना : कठिन काम शुरू करने के बाद कष्ट सहन करने से न डरना।


ईट का जवाब पत्थर : दुष्ट के साथ दुष्टता करना।

इस हाथ दे, उस हाथ ले : कर्मो का फल शीघ्र पाना।

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : कहीं सुख, कही दुःख।

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया : ईश्वर की बाते विचित्र है।

इतनी-सी जान, गज भर की जबान : छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना।


ऊँट के मुँह में जीरा : जरूरत से बहुत कम।

ऊँची दूकान फीके पकवान : केवल ब्राह्य प्रदर्शन।

ऊँट किस करवट बैठता है : किसकी जीत होती है।

ऊधो का लेना न माधो का देना : अपने काम से काम रखना।

ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा : सभी एक समान।

उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी : उद्योगी को ही धन मिलता है।

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपराधी ही पकड़नेवाले को डाँट बताये।

ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी : बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा।

ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी : जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना।


एक और एक ग्यारह : एकता में शक्ति होना।

एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी : दोष करके न मानना।

एक पन्थ दो काज : एक काम से दूसरा काम हो जाना।

एक अनार सौ बीमार : एक वस्तु और उसे चाहने वाले सभी।

एक म्यान में दो तलवार : एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले।

एक हाथ से ताली नहीं बजती : झगड़ा एक ओर से नहीं होता।

एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा : बुरे का और बुरे के साथ मेल होना।


काला अक्षर भैंस बराबर : एकदम अनपढ़ होना।

कंगाली में आटा गीला : परेशानी पर परेशानी आना।

काबुल में क्या गदहे नहीं होते : अच्छे बुरे सभी जगह है।

कोई इर घाट तो कोई बीर घाट : आपसी ताल-मेल का न होना।

कहे खेत की, सुने खलिहान की : हुक्म कुछ और करना कुछ और।

का वर्षा जब कृषि सुखाने : मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।

कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी : प्रकृति विरुद्ध काम।

कुम्हार अपने ही घड़ा सराहे : अपनी बनाई हुई वस्तु की स्वयं प्रशंसा करना।

कोयले की दलाली में मुँह काला : बुरे काम में साथ देने से बुराई ही मिलना।

काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती : छल-कपट का व्यवहार हमेशा नहीं चलता।

किसी का घर जले, कोई तापे : दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना।

कहीं का ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा : इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना।


खोदा पहाड़ निकली चुहिया : अधिक परिश्रम, थोड़ा लाभ।

खरी मजूरी चोखा काम : अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना।

खग जाने खग की ही भाषा : समान प्रवृत्ति वालों का ही एक दूसरे की सराहना करना।

खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा : अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को।

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है : संगति का प्रभाव एक-दूसरे पर अवश्य पड़ना।


गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : बनावटी परहेज।

गरजे सो बरसे नहीं : बकवादी कुछ नहीं करता।

गुरू गुड़, चेला चीनी : गुरू से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना।

गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा : पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना।

गाछे कटहल, ओठे तेल : काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा।

गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास : जिसका कोई दृढ़ सिद्धांत नहीं होता।

गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले आ पड़ी : उपकार करने के बदले स्वयं दुःख भोगना पड़ना।

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली : धन, सम्पत्ति के सम्बन्ध में छोटे का बड़े के साथ मेल करना।


घर का भेदी लंका ढाए : आपस की फूट से हानि होती है।

घर पर फूस नहीं, नाम धनपत : गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना।

घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना।

घी का लड्डू टेढ़ा भला : लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।

घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा : हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना।

घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना : दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना।

घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध : घर के व्यक्तियों की कद्र नहीं किन्तु बाहर के व्यक्तियों का सम्मान।


चिराग तले अँधेरा : अपनी बुराई नहीं दीखती।

चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय : महा कंजूस।

चूहे घर में दण्ड पेलते है : आभाव-ही-आभाव।

चोर की दाढ़ी में तिनका : अपराधी का सदैव शंका से घिरा रहना।

चूहे के चाम से नगाड़े नहीं मढ़े जाते : सीमित साधनों से बड़े काम नहीं किये जा सकते।


छछून्दर के सिर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति को अच्छा पद मिलना।


जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि :

जस दूल्हा तस बनी बराता : सभी साथी एक ही जैसे।

जैसी करनी, वैसी भरनी : कार्य के अनुसार परिणाम का मिलना।

जान बची तो लाखों पाये : जान बचने से बड़ा कोई लाभ न होना।

जैसे बहे बयार पीठ तब तैसी दीजे : समय के अनुसार ही काम करना।

जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ : परिश्रम का फल अवश्य मिलता है।

जादू वहीं जो सिर चढ़कर बोले : उपाय वही सफल और श्रेष्ठ, जिसका लोहा विरोधी को भी मानना पड़े।

जाके पाँव न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई : जिसके ऊपर बीतता नहीं वह उसके बारे में क्या जाने।


ठठेरे-ठठेरे बदलौअल : चालाक को चालक से काम पड़ना।

टूट चाप नहिं जुरै रिसाने : नुकसान हो जाने पर क्रोध करना व्यर्थ।


तीन लोक से मथुरा न्यारी : निराला ढंग।

तेल देखो तेल की धार देखो : रूख पहचानना।

तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता : शेखी बघारना।

तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा : जितने आदमी उतने विचार।

तन पर नहीं लत्ता पान खाए अलबत्ता : झूठा दिखावा करना।

तीन दिन मेहमान चौथे दिन हैवान : आतिथ्य थोड़े दिन का ही अच्छा।

तबेली की बला बन्दर के सिर : किसी और का अपराध दूसरे के सिर।

तुम डाल-डाल मैं पात-पात : किसी की चाल को खूब समझते हुए चाल चलना।

ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका : एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना।

तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे) : खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो।


थोथा चना बाजे घना : कम जानकार में घमण्ड अधिक होता है।

थूक कर चाटना ठीक नहीं : देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।


दूध का दूध पानी का पानी : सही निर्णय।

दाल-भात में मूसलचन्द : बेकार दखल देना।

देशी मुर्गी, विलायती बोल : बेमेल काम करना।

दीवारों के भी कान होते है : गुप्त बात छिपी नहीं रहती।

दूर का ढोल सुहावना : दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।

दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली : काम साधारण, खर्च अधिक।

दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी : मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।

दूध का जला छाछ को फूंक मारकर पीता है : धोखा खाकर आदमी सतर्क हो जाता है।

दुधारू गाय की दो लात भी भली : जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए।

दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है : एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना।


धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का : निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डालने वाला।


नीम हकीम खतरे जान : अयोग्य से हानि।

न देने के नौ बहाने : न देने के बहुत-से बहाने।

नक्कारखाने में तूती की आवाज : सुनवाई न होना।

नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े : गुण से अधिक बड़ाई।

नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च : काम साधारण, खर्च अधिक।

नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से काम करना।

नाच न जाने आँगन टेढ़ : काम न जानना और बहाना बनाना।

न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी : न कारण होगा, न कार्य होगा।

नौ नगद, न तेरह उधार : अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा।

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी : न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा।

नदी में रहकर मगर से वैर : जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना।

नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान : आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।


पंच परमेश्वर : पाँच पंचो की राय।

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं : पराधीनता में सुख नहीं।

पहले भीतर तब देवता-पितर : पेट-पूजा सबसे प्रधान।

पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं : सभी व्यक्ति एक-से नहीं होते।

पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत का खेल : भाग्यहीन होना।

पराये धन पर लक्ष्मीनारायण : दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना।

पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची : जबरदस्ती किसी के सर पड़ना।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे : दूसरों को उपदेश देने को आसान समझना।

पुचकारा कुत्ता सिर चढ़े : ओछे लोगों का ज्यादा मुँह लगाने पर अनुचित लाभ उठाना।

पानी पीकर जात पूछना : कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना।


फिसल पड़े तो हर-हर गंगे : मजबूरी में काम करना।


बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया : बहुत बड़ा घाटा।

बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय : जैसी करनी, वैसी भरनी।

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना : अचानक मनचाहा कार्य हो जाना।

बेकार से बेगार भली : चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना।

बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल : श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना।

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता।

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी।

बिल्ली को पहले ही दिन मार देना : भय के कारण को शुरूआत में ही खत्म कर देना।

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह : बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है।

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा : जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता।


भइ गति साँप-छछूँदर केरी : दुविधा में पड़ना।

भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय : मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।

भागते चोर की लंगोटी ही सही : सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना।

भागते भूत की लँगोटी ही सही : जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है।


मेढक को भी जुकाम : ओछे का इतराना।

मुँह में राम बगल में छुरी : कपटपूर्ण आचरण।

मानो तो देव, नहीं तो पत्थर : विश्वास ही फलदायक।

मार-मार कर हकीम बनाना : जबरदस्ती आगे बढ़ाना।

मन चंगा तो कठौती में गंगा : हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक।

मान न मान मैं तेरा मेहामन : जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।

माँगे भीख पूछे गाँव की जमा : अपनी असलियत भूलकर बात करना।

मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते : मुप्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ।

माले मुफ्त दिले बेरहम : मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना।

मियाँ की दौड़ मस्जिद तक : किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सिमित होना।

मोहरों की लूट, कोयले पर छाप : मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना।

मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी : जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या।


रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी : अधिक मजाक बुरा।

राम नाम जपना पराया माल अपना : धोखेबाजी से धन एकत्र करना।

रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी : बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना।


लेना-देना साढ़े बाईस : सिर्फ मोल-तोल करना।

लूट में चरखा नफा : मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा।

लश्कर में ऊँट बदनाम : दोष किसी का, बदनामी किसी की।


सिर सहलाए भेजा खाए : दोस्त बनकर हानि पहुँचाना।

सब धन बाईस पसेरी : अच्छे-बुरे सबको एक समझना।

सौ सयाने एक मत : बुद्धिमानों के विचार एक जैसे होना।

सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता : सिधाई से काम नहीं होता।

साँप मरे न लाठी टूटे : काम भी बन जाये और हानि भी न हो।

सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को : जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना।

सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू) : सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना।


हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत : असंगत बातें करना।

हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान : नीच का सम्मान।

हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं।

हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और : बोलना कुछ, करना कुछ और।

हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कहना कुछ और करना कुछ और।

होनहार बिरवान के होत चीकने पात : होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।

हथेली पर सरसों नहीं जमती : काम के लिए समय चाहिए जब चाहे तभी काम नहीं हो सकता।

हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार : उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए।