मगध देश के जंगलों में एक खूंखार डाकू का राज हुआ करता था। वह डाकू जितने भी लोगों की हत्या करता था, उनकी एक-एक उंगली काटकर गले में माला की तरह पहन लेता। इसी वजह से डाकू को सभी अंगुलिमाल के नाम से जानते थे।
आसपास के सभी गांवों में अंगुलिमाल का आतंक था। एक दिन उसी जंगल के पास के ही एक गांव में महात्मा बुद्ध पहुँचे। साधु के रूप में उन्हें देखकर हर किसी ने उनका अच्छी तरह से स्वागत किया। कुछ देर उस गांव में रूकने के बाद महात्मा बुद्ध को थोड़ा-सा अजीब लगा। तब उन्होंने लोगों से पूछा, 'आप सभी लोग इतने डरे और सहमे-सहमे से क्यों लग रहे है?
सबने एक-एक करके अंगुलिमाल डाकू द्वारा की जा रही हत्याओं और उंगली काटने के विषय में बताया। सभी दु:खी होकर बोले कि जो भी उस जंगल की तरफ जाता है, उसे पकड़कर वह डाकू उसकी हत्या कर देता है। अब तक वह 99 लोगों की हत्या कर चुका है और उनकी उंगलियों को काटकर उन्हें गले में माला की तरह पहनकर घूमता है। अंगुलिमाल के आतंक की वजह से हर कोई अब उस जंगल के पास गुजरने से भी डरता है।
सभी की बातों को सुनने के बाद महात्मा बुद्ध ने स्वयं उस जंगल में जाने का फैसला किया। जैसे ही महात्मा बुद्ध जंगल की ओर बढ़ने लगे, तो लोगों ने कहा कि वहाँ जाना खतरनाक हो सकता है। वह डाकू किसी को भी नहीं छोड़ता। आप बिना जंगल जाए ही हमें किसी तरह से उस डाकू से छुटकारा दिला दीजिये।
महात्मा बुद्ध लोगों की सारी बातें सुनने के बाद भी जंगल की ओर आगे बढ़ते रहे। कुछ ही देर में महात्मा बुद्ध जंगल पहुँच गये। जंगल में महात्मा के भेष में एक अकेले व्यक्ति को देखकर अंगुलिमाल को बड़ी हैरानी हुई। उसने सोचा कि इस जंगल में लोग आने से पहले कई बार सोचते है। आ भी जाते है, तो अकेले नहीं आते और आते भी है, तो डरे हुए। ये महात्मा तो बिना किसी डर के अकेले ही जंगल में घूम रहा है। अंगुलिमाल के मन में एक बार हुआ कि अभी इसे भी खत्म करके इसकी उंगली काट लेता हूँ।
तब अंगुलिमाल ने कहा, 'अरे! आगे कि ओर बढ़ते हुए कहाँ जा रहे हो। ठहर भी जाओ अब।' महात्मा बुद्ध ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। फिर गुस्से में डाकू बोला, 'मैंने कहा रूक जाओ।' तब महात्मा बुद्ध ने उसे पलटकर देखा कि लम्बा-चौड़ा, बड़ी-बड़ी आंखों वाला एक आदमी जिसके गले में उंगलियों की माला थी, वह उन्हें घूर रहा था।
उसकी तरफ देखने के बाद महात्मा बुद्ध दोबारा से चलने लगे। गुस्से में तमतमाते हुए अंगुलिमाल डाकू उनके पीछे अपनी तलवार लेकर दौड़ने लगा। डाकू जितना भी दौड़ता, लेकिन उन्हें पकड़ नहीं पाता। दौड़-दौड़कर वह थक गया। उसने दोबारा से कहा, 'रूक जाओ, वरना मैं तुम्हें मार दूंगा और तुम्हारी उंगली काटकर 100 लोगों को मारने की अपनी प्रतीज्ञा पूरी कर लूंगा।'
महात्मा बुद्ध बोले कि तुम अपने आप को बहुत शक्तिशाली समझते हो न, तो पेड़ से कुछ पत्तियां और टहनियां तोड़कर ले आओ। अंगुलिमाल ने उनका साहस देखकर सोचा कि जैसा ये कह रहे है कर ही लेता हूँ। वह थोड़ी देर बाद पत्तियां और टहनियां तोड़कर ले आया और कहा, ले आया मैं इन्हें।
फिर महात्मा बुद्ध ने कहा, 'अब इन्हें दोबारा पेड़ से जोड़ दो।'
यह सुनकर अंगुलिमाल बोला, 'तुम कैसे महात्मा हो, तुम्हें नहीं पता कि तोड़ी हुई चीज को दोबारा से जोड़ा नहीं जा सकता है।'
महात्मा बुद्ध ने कहा कि मैं यही तो तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि जब तुम्हारे पास किसी चीज को जोड़ने की ताकत नहीं है, तो तुम्हें किसी वस्तु को तोड़ने का अधिकार कैसे हो सकता है? अर्थात् यदि तुममें किसी को जीवन देने की क्षमता नहीं, तो तुम्हें उसे मारने का हक भी नहीं होना चाहिए।'
यह सब सुनकर अंगुलिमाल के हाथों से हथियार छूट गया। महात्मा बुद्ध ने आगे कहा, 'तुम मुझे रूक जा-रूक जा कह रहे थे। मैं तो कब से स्थिर खड़ा हूँ। तुम ही हो जो स्थिर नहीं हो।'
अंगुलिमाल ने कहा, 'मैं तो एक जगह पर खड़ा हूँ, तो कैसे अस्थिर हुआ और आप तब से चले जा रहे है।' महात्मा बुद्ध ने कहा, 'मैं लोगों को क्षमा करके स्थिर हूँ और तुम हर किसी के पीछे उसकी हत्या करते हुए भागने के कारण अस्थिर हो।'
यह सुनकर अंगुलिमाल डाकू की आंखें खुल गई और उसने कहा, 'आज के बाद मैं कोई अधर्म वाला कार्य नहीं करूंगा।'
रोते हुए अंगुलिमाल डाकू महात्मा बुद्ध के चरणों पर गिर गया। उसी दिन से अंगुलिमाल ने बुराई का रास्ता छोड़ दिया और बहुत बड़ा संन्यासी बन गया।
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