पीठ पर गोबर का किल्टा लिए खेत की चढ़ाई चढ़ते रामी की नजर बगीचे में सेब के पेड़ के चारों तरफ गोबर फैलाते अपने पति पर जा अटकी। पीठ के बोझ और पहाड़ की चढ़ाई के बावजूद उसकी चाल तेज हो गई। बगीचे में उसका पति अकेला नहीं खड़ा था। उसके पास वह नेता भी खड़ा था, जो हर बार ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ते-लड़ते बूढ़ा हो रहा था, पर जीता कभी भी नहीं।

जब से किसान आंदोलन चला है, तीन बार आकर वह चंदा ले गया और हर बार आंदोलन में दिल्ली चलने की बात भी करता है। माना इस साल सेब की फसल अच्छी हुई है, पर यह जो हमारी मेहनत की कमाई है, कहीं से दान में तो नहीं मिली। स्कूल खुलते ही नई क्लास लगेंगी, बच्चों के कपड़े, किताबें, वर्दी और भी दुनिया भर के खर्चे। इसी फसल पर सारा दारोमदार है और यह नेताजी? इनकी अपनी दूकान अलग से चलती है, जहाँ इनकी मैडम बैठती है। दो-दो बेटे अफसर है, बगीचा लाखों रूपए साल के देता है। काला सफेद का तो पता नहीं, क्या-क्या दबा रखा है। ले-देकर हम गरीबों के पीछे पड़े रहते है। सोचते-सोचते रामी दोनों के पास पहुँच गई। नेताजी कह रहे थे, "देख बीरू! हम लोग जो लड़ाई लड़ रहे है, वह तुम जैसे किसानों के हित में ही है। मैं तो अभी भी कह रहा हूँ, लड़ाई लम्बी चलेगी। तुम दिल्ली चलो और धरना प्रदर्शन पर बैठो। कल जब हम लड़ाई जीत जायेंगे, तब तुम्हें दुःख होगा कि तुमने इतना अच्छा मौका गवां दिया।"

'धम्म! रामी ने झुककर किल्टे का गोबर पेड़ के नीचे डाला तो नेताजी ने पलटकर देखा। उनके माथे पर पसीना आ गया। रामी दोनों हाथ कमर पर टिकाए खा जाने वाली नजरों से अपने पति को घूर रही थी और वह अपनी हँसी छुपाने के लिए दूसरी ओर देखने लगा।

"मैं चलता हूँ, बीरू! फिर आऊँगा।" नेताजी ने खिसकने में ही भलाई समझी। वह जानते थे कि रामी उनकी बखिया उधेड़ने में झिझकेगी नहीं, पर रामी उनके सामने जा खड़ी हुई, "नेताजी! हर बार आपको चंदा यह सोचकर देते रहे कि शायद आप कोई अच्छा काम कर रहे है, पर आप भी यह मत भूलिए कि अब अधिकतर लोग पढ़े-लिखे है। हम भी सब कुछ जानते है कि किसान आंदोलन में क्या हो रहा है।" रामी गुस्से में बिफर रही थी,"सारे रास्ते बर्फ से ढके हुए है। हम किसान इतनी कड़ाके की ठंड में खेतों में गोबर डाल रहे है, ताकि आने वाले साल में हमारी फसल अच्छी हो। हमको नहीं लड़ना चुनाव और आप! एक बार तो जीतकर दिखा दो। खबरदार, जो मेरे आदमी को दिल्ली ले जाने की सोची। अगर हमें दिल्ली ले जाना चाहते हो तो पहले हमारे सारे बगीचे में गोबर डाल दो। कटिंग और स्प्रे दवा का छिड़काव करा दो। हम दोनों बस देखभाल करते रहेंगे। काम खत्म होने पर मैं भी चलती हूँ आपके साथ दिल्ली। बच्चे और मेरे पशु, आपकी घरवाली देख ही लेगी। इतनी कुर्बानी तो आप करेंगे ही।"

नेताजी बिना कुछ बोले खेत की उतराई उतर रहे थे और बीरू आराम से बैठा बीड़ी फूंक रहा था और खुशी के मारे मन ही मन फूले न समा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आज उनकी खैर नहीं। अगर नेताजी थोड़ी देर और खड़े रहते तो आज शायद रामी के हाथों अपनी भारी फजीहत करा बैठते, लेकिन उन्होंने वहाँ से खिसकने में अपनी भलाई समझी।