काशी में प्रतापमुकुट नामक एक राजा राज करता था। उसके पुत्र का नाम वज्रमुकुट था। एक दिन राजकुमार वज्रमुकुट दीवान के लड़के के साथ शिकार खेलने जंगल चला गया। घूमते-घूमते उन्हें रास्ते में एक तालाब दिखाई दिया। दोनों थोड़ी देर के लिए वहाँ रूके और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर कुछ दूरी पर स्थित महादेव के मन्दिर में दर्शन के लिए चले गये। घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर ही बाँध दिया।
मन्दिर से दर्शन करके वापस लौटने पर दोनों ने देखा कि तालाब के किनारे एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है। दीवान का लड़का तो वहीं मन्दिर के पास एक पेड़ के नीचे ही रूक गया, पर राजकुमार वज्रमुकुट से रहा नहीं गया। राजकुमारी को देखने के लिए वह आगे बढ़ता ही चला गया।
जब राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो वह उसके रंग-रूप पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ देखती ही रही। फिर राजकुमारी ने जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगाकर अपनी सखियों के साथ वहाँ से चली गई।
उसके चले जाने पर राजकुमार बहुत निराश हुआ और वापस आकर दीवान के लड़के से कहा, "मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, और न ही ठिकाना। वह मुझे कैसे मिलेगी?"
दीवान के लड़के ने कहा, "राजकुमार, आप इतना घबरायें नहीं। वह सब कुछ बता गई है।"
राजकुमार ने पूछा, "मित्र, वह कैसे?"
वह बोला, "उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया जिसका मतलब था कि मैं कर्नाटक की रहने वाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतबाट राजा की पुत्री हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।"
इतना सुनना ही था कि राजकुमार खुशी से झूम उठा और बोला, "अब मुझे कर्नाटक देश ले चलो।"
दोनों वहाँ से चल दिये। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिनों बाद वहाँ पहुँचे। जब वे राजा के महल के पास पहुँचे तो उन्हें एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली।
उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और बोले, "माई, हम सौदागर है। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो।"
उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ आई। बोली, "बेटा, तुम्हारा ही घर है। जब तक जी चाहे रूको।"
दोनों वहीं ठहर गये। दीवान के बेटे ने बुढ़िया से पूछा, "माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुजर कैसे होती है?"
बुढ़िया ने जवाब दिया, "बेटा, मेरा एक पुत्र है जो राजा की चाकरी में है। मैं राजा की पुत्री पद्मावती की धाय थी। बूढ़ी हो जाने से अब घर में ही रहती हूँ। राजा की दया से खाने-पीने की कोई कमी नहीं है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में अवश्य जाती हूँ।"
राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, "माई, कल तुम वहाँ जाओ और राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।"
जब अगले दिन बुढ़िया राजमहल गई तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। यह सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होकर हाथों में चन्दन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, "मेरे घर से निकल जाओ।"
बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया। राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, "राजकुमार, आप घबरायें नहीं, उसकी बातों को समझें। उसने दसों उँगलियाँ चन्दन में मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज चाँदनी के है। उनके बीतने पर मैं अँधेरी रात में मिलूँगी।"
दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को खबर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, "भाग यहाँ से।"
बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने समझाया, "इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।"
तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। यह सुनकर दीवान का लड़का बोला, "मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की के रास्ते आने को बुलाया है।"
मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया और हथियार बाँधे। दो पहर रात बीत जाने पर वह महल में जा पहुँचा और खिड़की के रास्ते अन्दर पहुँच गया। राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गई।
अन्दर का हाल देखकर राजकुमार की आँखें खुली रह गई। एक से बढ़कर एक चीजें थी। रात-भर राजकुमार, राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया, राजकुमारी ने राजकुमार को छिपा लिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल दिया। इस तरह कई दिन बीत गये। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आई। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा। उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया। बोला, "वह मेरा बड़ा प्यारा मित्र है और बड़ा चतुर भी। उसकी होशियारी ही से तो तुम मुझे मिल पाई हो।"
राजकुमारी ने कहा, "मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।"
खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुँचा। वे दोनों एक-दूसरे से महीने भर से नहीं मिले थे। राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुनाकर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी है, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है।
दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, "यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गई कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में जहर मिलाकर भेजा है।"
यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया। कुत्ता लड्डू खाते ही मर गया।
राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, "ऐसी स्त्री से भगवान् ही बचाये! मैं अब उसके पास नहीं जाऊँगा।"
दीवान का बेटा बोला, "नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले जा सके। आज रात को तुम वहाँ जाना। जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।"
राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ ले, योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने बाजार में ले जाकर बेच आओ। कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरू के पास चलो और उसे यहाँ ले आना।
राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि ये मेरे गुरू ने मुझे दिये है। गुरू को भी पकड़ लिया गया। सब राजा के सामने पहुँचे।
राजा ने पूछा, "योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?"
योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, "महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आई। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल का निशान बना दिया।" इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी देखा, तो था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, "महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?"
योगी ने जवाब दिया, "हे! राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहने वाले से कोई खोटा काम हो जाये तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।" यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बैठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो पहले से ही ताक में बैठे थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आये और आनन्द से रहने लगे।
इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, "हे! राजन्, यह बताओ कि पाप किसको लगेगा?"
राजा ने कहा, "पाप तो राजा को ही लगना चाहिए। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा का कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने सबसे बड़ा पाप यह किया कि बिना सोच-विचार के उसे देश निकाला दे दिया।"
राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, "हे! राजन्, सुनो, मैं तुम्हें एक कहानी और सुनाता हूँ।"
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