आज का युग खेलों का युग है। अखबार, रेडियो और सिनेमा आदि हर जगह खेलों को स्थान दिया जाता है। जीवन की सफलता के लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। शिक्षा से यदि मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है तो खेलों से शारीरिक स्वास्थ्य। शरीर की अस्वस्थता में मन का स्वस्थ रहना असम्भव है। इस दृष्टि से शिक्षा में खेलों को विशेष महत्व दिया गया है। खेल विद्यार्थी का जीवन है। इसके अभाव में विद्यार्थी निष्क्रिय, आलसी एवं निराश हो जाता है। शिक्षा में खेलों का कितना महत्व है, इस विषय पर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है।

शिक्षा के क्षेत्र में खेलों की बहुत आवश्यकता है। विद्यार्थी का काम रात-दिन केवल किताबें रटकर पास होना ही नहीं है, अपितु शरीर को स्वस्थ रखना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पढ़ना। जो विद्यार्थी अध्ययन के साथ खेलों में भाग नहीं लेते है, वे कागजी पहलवान बनकर रह जाते है। उनकी दशा देखकर बड़ी दया आती है। यदि वे अपना कुछ समय खेल में भी लगाते, तो उनकी यह दयनीय दशा कभी न होती। पढ़ते-पढ़ते थक जाने पर मस्तिष्क को फिर से ताजा बनाने के लिए खेल-कूद आवश्यक है। प्राय: खेल में भाग लेने वाले विद्यार्थी पढ़ने में निपुण होते है। वास्तव में खेल के महत्व को खिलाड़ी ही समझ सकते है। जब खिलाड़ी खेल के मैदान में आता है, उस समय संसार के समस्त झंझटों से मुक्त हो जाता है। उसका लक्ष्य खेलना होता है – बस खेलना और कुछ नहीं। खिलाड़ियों के सुन्दर शारीरिक गठन को देखकर खेलों के महत्व को समझा जा सकता है। खेलों के महत्व को दृष्टि में रखकर ही स्कूलों में अध्ययन के साथ-साथ खेलों को विशेष स्थान दिया गया है, परन्तु खेल केवल खेल की भावना से खेलने चाहिए। हार और जीत का खेल में कोई महत्व नहीं होता। खेल को जीतने से खिलाड़ी को शिक्षा मिलती है कि जीवन में सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए। खेल की हार खिलाड़ी को असफलता में हिम्मत न हारने की प्रेरणा देती है।

खेलों से हमें बहुत-से लाभ होते है। खेलने वाले छात्र को आलस्य नहीं घेर पाता। खेलों से बुद्धि विकसित होती है और शरीर सुन्दर एवं सुगठित हो जाता है। अनुशासन एवं एकता की भावना पैदा होती है। सहपाठियों में प्रेम का संचार होता है। कार्य को शीघ्रता से करने की आदत पड़ जाती है। ईमानदारी व न्याय से कार्य करने की शिक्षा मिलती है और चरित्र का निर्माण होता है। शरीर स्वस्थ होने से विद्याध्ययन में खूब मन लगता है। महात्मा गांधीजी का कथन है – "स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है।" इसके अतिरिक्त खेलों से और भी लाभ होते है, जैसे – घमंड न करना, हारने पर भी हिम्मत न हारना, एकता की भावना का विकास व सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित होना आदि।

शिक्षा में खेलों का विशेष महत्व है। इन दोनों का साथ-साथ चलना अधिक लाभदायक है। केवल शिक्षा ग्रहण करने वाला मनुष्य डरपोक, दुर्बल, आलसी और कायर बन जाता है। इस प्रकार केवल खेलों में भाग लेने वाला व्यक्ति भी अपने सफल नहीं हो पाता। यदि शिक्षा और खेल दोनों का उचित मेल कर दिया जाए तो सोने में सुगंध हो जायेगी। आजकल ऐसी शिक्षा पद्धति का आविष्कार हो रहा है जिसमें खेल के माध्यम से भी शिक्षा दी जाती है, क्योंकि बचपन में बालक पढ़ाई की अपेक्षा खेल को अधिक पसन्द करते है। बच्चा निष्क्रिय होकर नहीं बैठ सकता। उसे ऐसा काम मिलना चाहिए, जिससे वह सक्रिय रह सके। इसके लिए शिक्षा में खेल पद्धति को अपनाया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा और खेल में परस्पर गहरा सम्बन्ध है।

मनुष्य अपने जीवन काल में सदा कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। विद्यार्थी जितना खेल के मैदान में जाकर सीखते है, शायद उतना स्कूल की कक्षाओं में न सीखते हो। स्कूल का वातावरण बंधन और भय का होता है, जबकि खेल के मैदान का वातावरण प्रेम और स्वतंत्रता का होता है। वहाँ बच्चे पर किसी का दबाव नहीं होता है। खेल के मैदान में वह जो कुछ ग्रहण करता है, चिरस्थायी होता है। स्पष्ट है कि शिक्षा में खेलों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए, जिससे विद्यार्थी का चहुँमुखी विकास हो सके। वास्तव में खेल को एकता का प्रतीक माना जाता है। हमें उत्कृष्ट खेल भावना से खेलों में भाग लेना चाहिए। स्वस्थ रहते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा पूर्ण करनी चाहिए। खेल स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए परम आवश्यक है।

"खेलों मिल सहयोग से, मुक्ति मिलेगी रोग से।
मेल भरा अनुशासन है, खेल सुसंयम-शासन है॥"

वास्तव में स्वास्थ्य ही सच्ची सम्पत्ति है और स्वस्थ शरीर काे विकसित करने में खेल की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह खिन्नता और उदासी को बड़ी आसानी से दूर करता ही है साथ ही साथ मन को प्रफुल्लित भी करता है। सही अर्थ में हमें काम के समय काम और खेल के समय खेल पर ध्यान देना चाहिए। सुख और प्रसन्नता का यही मार्ग है।