यजुपुरा नामक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। जिस दिन उसके पुत्र का जन्म हुआ, उसी दिन उसके घर में रहने वाली नकुली ने भी एक नेवले को जन्म दिया। ब्राह्मण की पत्‍नी बहुत दयालु स्वभाव की थी। उसने उस छोटे नेवले को भी अपने पुत्र के समान ही पाला-पोसा और बड़ा किया। वह नेवला सदैव उसके पुत्र के साथ खेलता था। दोनों में घनिष्ठ प्रेम था। ब्राह्मणी भी दोनों के प्रेम को देखकर प्रसन्न रहती, किन्तु उसके मन में यह आशंका हमेशा बनी रहती थी कि किसी दिन यह नेवला उसके पुत्र को काट न खाये। जानवरों के बुद्धि नहीं होती, मूर्खतावश वह कोई भी अनिष्ट कर सकते है शायद ऐसी उसे आशंका थी।

एक दिन ब्राह्मणी अपने पुत्र को एक वृक्ष की छाया में सुलाकर स्वयं पास के जलाशय में पानी भरने चली गई। जाते हुए वह अपने पति से कहकर गई कि वहीं ठहरकर पुत्र की देख-रेख करे, कहीं ऐसा न हो कि नेवला उसे काट खाये। पत्‍नी के जाने के बाद ब्राह्मण ने सोचा, 'नेवले और बच्चे में गहरी मित्रता है। आखिर नेवला बच्चे को हानि क्यों पहुँचायेगा?' यह सोचकर वह अपने सोये हुए बच्चे और नेवले को वृक्ष की छाया में छोड़कर स्वयं किसी काम से चला गया।

दुर्भाग्यवश उसी समय एक काला नाग पास के बिल से बाहर निकला जिसे नेवले ने देख लिया। उसे डर हुआ कि कहीं यह उसके मित्र को डस न ले, इसलिए वह काले नाग पर टूट पड़ा और स्वयं बहुत क्षत-विक्षत होने के बाद भी उसने नाग के खंड-खंड कर दिये।

नाग अर्थात् साँप को मारने के बाद नेवला उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर ब्राह्मणी पानी भरने गई थी। उसने सोचा कि वह उसकी वीरता की प्रशंसा करेगी, किन्तु हुआ इसके विपरीत।

उसकी खून से सनी देह को देखकर ब्राह्मणी का मन उन्हीं पुरानी आशंकाओं से भर गया कि कहीं इसने उसके पुत्र को काट न लिया हो। यह विचार आते ही उसने बिना सोचे-समझे क्रोध में आकर सिर पर उठाये घड़े को नेवले पर फेंक दिया। छोटा-सा नेवला जल से भरे घड़े की चोट खाकर वहीं मर गया। ब्राह्मणी वहाँ से भागती हुई वृक्ष के नीचे पहुँची। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका पुत्र बड़ी शान्ति से सो रहा है और उससे कुछ दूरी पर एक काले नाग का शरीर कई खंडों में क्षत-विक्षत पड़ा हुआ है। तब उसे नेवले की वीरता का अहसास हुआ, किन्तु अब पछताने के सिवाय उसके पास कोई दूसरा रास्ता न था।

इसी बीच ब्राह्मण भी वहाँ आ गया। वहाँ आकर उसने अपनी पत्‍नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंकित हो उठा, किन्तु पुत्र को कुशलपूर्वक सोते देख उसका मन शान्त हो गया। ब्राह्मणी ने जब अपने पति को रोते-रोते सारी कहानी बताई तो उसे भी बहुत दुःख हुआ।