वाच्य किसे कहते है?

क्रिया का वह रूपान्तरण जिसके द्वारा यह पता चलता है कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है, उसे वाच्य कहते है। अर्थात् इसके द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि वाक्य में इस्तेमाल क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरूष कर्ता, कर्म या भाव में से किसके अनुसार है।

वाच्य के भेद

मुख्य रूप से इसके तीन भेद होते है जो कि इस प्रकार है –

• कर्तृवाच्य

क्रिया का वह रूपान्तरण जिसके द्वारा वाक्य में कर्ता की प्रधानता का पता चलता है, उसे कर्तृवाच्य कहते है। दूसरे शब्दों में, किसी वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरूष कर्ता के अनुसार परिवर्तित हो रहे हो, तो वहाँ कर्तृवाच्य होता है। यह मुख्य रूप से सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाओं से बनता है।
उदाहरण –
सीता गाती है।
राम खाना खाता है।

• कर्मवाच्य

क्रिया का वह रूपान्तरण जिसके द्वारा वाक्य में कर्म की प्रधानता का पता चलता है, उसे कर्मवाच्य कहते है। दूसरे शब्दों में, किसी वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरूष कर्म के अनुसार परिवर्तित हो रहे हो, तो वहाँ कर्मवाच्य होता है। यह मुख्य रूप से सकर्मक क्रिया से बनता है।
उदाहरण –
सीता ने गीत गाया।
राम ने किताब पढ़ी।

• भाववाच्य

क्रिया का वह रूपान्तरण जिसके द्वारा वाक्य में भाव की प्रधानता का पता चलता है, उसे भाववाच्य कहते है। दूसरे शब्दों में, किसी वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरूष भाव के अनुसार परिवर्तित हो रहे हो, तो वहाँ भाववाच्य होता है। यह मुख्य रूप से अकर्मक क्रिया से बनता है।
उदाहरण –
सीता से रोया नहीं जाता।
राम से चला नहीं जाता।