वर्ण

भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है, जिसे वर्ण कहते है।

वर्णमाला

वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है।

उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या

उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या 46 है जिनमें 11 स्वर और 35 व्यंजन आते है।

स्वरों − अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ।

नोट − जब हम कोई शब्द लिखते है तो उसमें 'अ' की मात्रा कही नहीं लगाते है, केवल उसे लिखते है। यही कारण है कि मात्रा के आधार पर स्वरों की संख्या 10 [आ ( ा ), इ ( ि ), ई ( ी ), उ ( ु ), ऊ ( ू ), ऋ ( ृ ), ए ( े ), ऐ ( ैै ), ओ ( ो ), औ ( ौ )] होती है।

व्यंजन − क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड (ड़) ढ (ढ़) ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह।

लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या

लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या 52 है जिनमें 11 स्वर, 1 अनुस्वार, 1 विसर्ग, 33 व्यंजन, 2 द्विगुण व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन आते है। इन सभी का वर्गीकरण इस प्रकार है −

स्वर − अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

अनुस्वार − अं

विसर्ग − अ:

व्यंजन − क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह

द्विगुण व्यंजन − ड़ ढ़

संयुक्त व्यंजन − क्ष त्र ज्ञ श्र

स्वर

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्णों को स्वर कहते है जिनका वर्गीकरण निम्नवत है −

• मुख स्थान के आधार पर

कण्ठ (कण्ठ्य) − अ, आ, अ:

तालु (तालव्य) − इ, ई

ओठ (ओष्ठ्य) − उ, ऊ

मूर्धा (मूर्धन्य) − ऋ

कण्ठ + तालु − ए, ऐ

कण्ठ + ओठ − ओ, औ

नासिक (नासिक्य) − अं

• जीभ के प्रयोग के आधार पर

अग्र स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र (अगला) भाग काम करता है उन्हें अग्र स्वर कहते है। उदाहरण − इ, ई, ए, ऐ।

मध्य स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य (बीच) भाग काम करता है उन्हें मध्य स्वर कहते है। उदाहरण − अ।

पश्च स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च (पिछला) भाग काम करता है उन्हें पश्च स्वर कहते है। उदाहरण − आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ।

• मुख द्वार खुलने के आधार पर

विवृत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार पूरा खुलता है उन्हें विवृत स्वर कहते है। उदाहरण − आ।

संवृत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार लगभग बन्द रहता है उन्हें संवृत स्वर कहते है। उदाहरण − इ, ई, उ, ऊ।

अर्ध विवृत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार आधा खुलता है उन्हें अर्ध विवृत स्वर कहते है। उदाहरण − अ, ऐ, औ, ऑ।

अर्ध संवृत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार आधा बन्द रहता है उन्हें संवृत स्वर कहते है। उदाहरण − ए, ओ।

• ओंठों की स्थिति के आधार पर

अवृतमुखी

जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ का आकार गोलाकार नहीं होता है उन्हें अवृतमुखी स्वर कहते है। उदाहरण − अ, आ, इ, ई, ए, ऐ।

वृतमुखी

जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ का आकार गोलाकार होता है उन्हें वृतमुखी स्वर कहते है। उदाहरण − उ, ऊ, ओ, औ, ऑ।

• मात्रा अथवा उच्चारण काल के आधार पर

ह्रस्व स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते है। उदाहरण − अ, इ, उ, ऋ।

दीर्घ स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से भी ज्यादा समय (दो मात्रा का समय) लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है। उदाहरण − आ , ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

प्लुत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी ज्यादा समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते है। उदाहरण − रा ऽऽऽ म।

• नाक एवं मुँह से हवा निकलने के आधार पर

निरनुनासिक स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में हवा केवल मुँह से निकलती है उन्हें निरनुनासिक स्वर कहते है। उदाहरण − अ, आ, इ।

अनुनासिक स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है उन्हें अनुनासिक स्वर कहते है। उदाहरण − अँ, आँ, एँ।

व्यंजन

स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्णों को व्यंजन कहते है जिनका वर्गीकरण तीन भागों में किया गया है −

• स्पर्श व्यंजन

जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा फेफड़ो से निकलते हुए मुँह के किसी विशेष स्थान जैसे - कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, ओंठ इत्यादि का स्पर्श करते हुए निकले, उसे स्पर्श व्यंजन कहते है। इन सभी का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है −

कण्ठ्य वर्ग

उच्चारण स्थान कण्ठ
अघोष अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण
सघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण नासिक्य

तालव्य वर्ग

उच्चारण स्थान तालु
अघोष अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण
सघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण नासिक्य

मूर्धन्य वर्ग

उच्चारण स्थान मूर्धा
अघोष अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण
सघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण नासिक्य

दन्त्य वर्ग

उच्चारण स्थान दाँत
अघोष अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण
सघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण नासिक्य

ओष्ठ्य वर्ग

उच्चारण स्थान ओंठ
अघोष अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण
सघोष महाप्राण
सघोष अल्पप्राण नासिक्य

• अन्तःस्थ व्यंजन

जिन वर्णों का उच्चारण पारम्परिक वर्णमाला के बीच (स्वर एवं व्यंजन के मध्य) स्थित हो, उसे अन्त:स्थ व्यंजन कहते है। इन सभी का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है −

वर्ग उच्चारण स्थान सघोष अल्पप्राण
तालव्य तालु
वर्त्स्य दन्तमूल/मसूढ़ा
वर्त्स्य दन्तमूल/मसूढ़ा
दन्त्य + ओष्ठ्य ऊपर के दाँत + निचला ओंठ

Important Points
य, व − अर्धस्वर (जो कभी स्वर तो कभी व्यंजन हो)
र − लुंठित (जिसके उच्चारण में जीभ, तालु से लुढ़कर स्पर्श करे)
ल − पार्श्विक (जिसके उच्चारण में हवा जीभ के पार्श्व/बगल से निकल जाय)

• ऊष्म/संघर्षी व्यंजन

जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख में किसी विशेष स्थान पर घर्षण (रगड़) खाते हुए निकले और उससे ऊष्मा (गर्मी) उत्पन्न हो, उसे ऊष्म/संघर्षी व्यंजन कहते है। इन सभी का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है −

वर्ग उच्चारण स्थान अघोष महाप्राण सघोष महाप्राण
तालव्य तालु
मूर्धन्य मूर्धा
वर्त्स्य दन्तमूल/मसूढ़ा
स्वरयंत्रीय स्वरयंत्र (कण्ठ के भीतर)