बेरोजगारी

यह हमारे देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है। इसका मुख्य कारण आजकल की युवा पीढ़ी का समय की मांग के अनुसार कार्य में कुशल न होना है और इसके अलावा देश की बढ़ती जनसंख्या भी इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की जनसंख्या लगभग 35 करोड़ थी और जो आज लगभग 130 करोड़ हो गई है। बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर उपलब्ध न हो पाना बेरोजगारी को बढ़ने देने के प्रति जिम्मेदार है।

अशिक्षा

हमारे देश की अधिकांश जनता आज भी अशिक्षित है। एक समय था कि जब ऋषियों की इस भूमि में ज्ञान का सूर्य चमकता था। इसके प्रकाश में सारा संसार जीवन का मार्ग खोजता था। वेदों की उत्पत्ति भी इसी देश में हुई, किन्तु आज अशिक्षा की अंधेरी कोठरी में चारों तरफ घूमती हुई भारत की जनता अपने लक्ष्य रूपी दरवाजे को नहीं खोज पा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि ज्ञान का सूर्य पूर्व में उदय होकर अब पश्चिम की ओर ढल गया है। हमें अपने इस देश की महत्वपूर्ण समस्या का शीघ्र समाधान करना होगा। शिक्षा के अभाव में हमारी जनता एवं देश का उद्धार होना कदापि सम्भव नहीं है।

अस्वास्थ्य

इस समस्या के मूल में एक ओर आर्थिक कठिनाई है और दूसरी ओर नैतिक पतन। धन के अभाव में जनता को वे खाद्य सामग्री नहीं मिल पाती जो शरीर को पुष्ट एवं प्रबल बनाते है। इसके अतिरिक्त हमारा इतना नैतिक पतन हो गया है कि हम सदाचार को बिल्कुल भूल ही बैठे है। हमारी मानसिक भावनाएँ विकृत हो गई है। इनसे मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के रोग बढ़ते जा रहे है। अत: तत्काल रोगों की रोकथाम करना आवश्यक हो जाता है। हमारे देश में चिकित्सा के साधनों की भारी कमी है। बहुत से मनुष्य ऐसे है कि जो अपनी निर्धनता के कारण रोगों की उचित चिकित्सा तक नहीं करा पाते है और शीघ्र इस संसार से चले जाते है। हमारे गाँवों में अस्पताल और औषधालय खुलने बहुत आवश्यक है।

महँगाई

इसके बढ़ने से सबसे ज्यादा प्रभाव समाज के मध्यम एवं निचले वर्ग पर पड़ता है। जब बाजार में वस्तुओं की माँग तेजी से बढ़ती है और उसके अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पाती तो वस्तुओं के मूल्य अपने आप बढ़ते जाते है और जो हमें महँगाई की शक्ल के रूप में दिखाई देता है।

निर्धनता

यह समस्या हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है। इस समस्या के सुलझ जाने से यहाँ की कई समस्याएँ अपने आप से दूर हो सकती है। समाज में इतनी निर्धनता है कि अनेक लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता, शरीर ढंकने को कपड़ा तक नहीं मिलता। निर्धनता के कारण ही रोग एवं चोरी आदि दोष समाज में जोर पकड़ते जा रहे है। यह ऐसी भयंकर समस्या है जिससे छुटकारा पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

दहेज प्रथा

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रजातंत्र की स्थापना हुई। संविधान में स्त्री और पुरूष को समान अधिकार दिये गये है और दूसरी ओर दहेज जैसी कुप्रथा को आज भी प्रोत्साहन मिल रहा है। इसको रोकने के लिए कई सारे कानून बनाये गये है फिर भी वर्तमान में शादियों में दहेज के लेन-देन की प्रथा जारी है।

कृषि

हमारे देश में छोटे किसानों की दशा अत्यन्त शोचनीय है। उनके सामने बीज, खाद एवं ऋण आदि की जटिल समस्याएँ है। सिंचाई के साधन और आधुनिक वैज्ञानिक औजारों की सुविधाएँ सरकार द्वारा आसानी से सुलभ करायी जाये, तो किसानों की समस्या को कुछ हद तक हल किया जा सकता है। इसके अलावा जगह-जगह पर कृषि के स्कूल खोलकर किसानों को कृषि की शिक्षा देने की उचित व्यस्था होनी चाहिए।

भ्रष्टाचार

समाज में विभिन्न स्तरों और क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से जिस निष्ठा एवं ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, उसका न होना या करना ही भ्रष्टाचार है। इसके अन्तर्गत आमतौर पर घूस लेना, पक्षपात करना, सार्वजनिक धन एवं सम्पत्ति का दुरूपयोग करना, नियम विरूद्ध किसी को लाभ अथवा हानि पहुँचाना इत्यादि आता है। यह किसी भी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। यह किसी देश के प्राइवेट एवं सरकारी तंत्र में फैल जाए तो उस देश के विकास का पतन होना सम्भव है।

बेकारी

यह हमारे समाज का ऐसा रोग है जो अन्दर ही अन्दर समाज को खोखला बना रहा है। कितने ही उच्च शिक्षित मनुष्य भी बेकारी से पीड़ित है। कितने ही तो पीड़ित होकर आत्महत्या जैसे घृणित कार्य करने तक को तैयार हो जाते है। कुटीर उद्योगों का विकास इस समस्या को हल करने में काफी सहायता कर सकता है।

नारी उत्थान

नारी का पतन हमारे सामाजिक विकास की सबसे बड़ी बाधा है। नारी समाज की गन्दी प्रथाएँ समाप्त होनी चाहिए। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने एवं जीवन का विकास करने की अन्य सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए। स्वतंत्र भारत के संविधान में नारी को पुरूषों के समान अधिकार देकर महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। वास्तव में नारी का समाज में पुरूष से कम महत्व नहीं है। पुरूष और स्त्री समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए है, जिनमें से किसी एक के अभाव में जीवन की गाड़ी ही नहीं चल सकती। नारी का शिक्षित और विकास होना पुरूष से भी ज्यादा जरूरी है।