एक धोबी के पास 'उद्धत' नाम का एक गधा था जिसे वह दिन भर कपड़ों के गट्ठर ढोने के काम में लगाए रहता था। धोबी स्वयं कंजूस और निर्दयी था। वह अपने गधे के लिए सही समय पर चारे का प्रबन्ध नहीं करता था। बस रात को चरने के लिए खुला छोड़ देता था। धीरे-धीरे गधा शरीर से बहुत ही दुर्बल हो गया।
एक रात उस गधे की मुलाकात 'बीरू' नामक एक गीदड़ से हुई। गीदड़ ने उससे पूछा, 'कहिए महाशय, आपका क्या हाल है? आप इतने कमजोर क्यों दिखाई दे रहे है?'
गधे ने दु:खी स्वर में बताया कि कैसे उसका मालिक दिन भर उससे काम लेता है और खाने के लिए कुछ नहीं देता। रात को भोजन के लिए भी इधर-उधर भटकना पड़ता है।
गीदड़ बोला, 'तो समझो अब तुम्हारी भुखमरी के दिन चले गये। यहाँ पास में ही एक बड़ा सब्जियों का बाग है। वहाँ तरह-तरह की सब्जियाँ उगाई जाती है। खीरे, ककड़ियाँ, तोरई, गाजर, मूली, शलजम और बैंगनों की तो मानो बहार है। मैंने बाग के अन्दर घुसने का गुप्त मार्ग बना रखा है। बस वहाँ हर रात अन्दर घुसकर छककर खाता हूँ और खुद की सेहत बना रहा हूँ। अगर तुम चाहो तो मेरे साथ चला करो। लार टपकाता गधा, गीदड़ के साथ हो लिया।
बाग में घुसकर गधे ने महीनों के बाद पहली बार भरपेट खाना खाया। दोनों रात भर वहीं रहे और सुबह होने से पहले गीदड़ जंगल की ओर चला गया और गधा अपने धोबी के पास आ गया।
उसके बाद वे रोज रात को एक ही जगह मिलते। बाग में घुसते और जी भरकर खाते। धीरे-धीरे गधे का शरीर भरने लगा। उसके बालों में चमक आने लगी और चाल भी मस्त हो गई। वह भुखमरी के दिन बिल्कुल भूल गया। एक रात खूब खाने के बाद गधे की तबीयत अच्छी तरह हरी हो गई। वह झूमने लगा और अपना मुँह ऊपर उठाकर कान फड़फड़ाने लगा। गीदड़ ने चिंतित होकर पूछा 'मित्र, यह क्या कर रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?'
गधा आँखें बन्द करके मस्त स्वर में बोला, 'मेरा दिल गाने का कर रहा है। अच्छा भोजन करने के बाद गाना चाहिए। सोच रहा हूँ कि ढैंचू राग गाऊं।'
गीदड़ ने तुरन्त चेतावनी दी और कहा, 'ना-ना, ऐसा न करना गधे भाई। गाने-वाने का चक्कर मत चलाओ। यह मत भूलो कि हम दोनों यहाँ चोरी कर रहे है। आखिर मुसीबत को न्यौता क्यों दे रहे हो?'
गधे ने टेढ़ी नजर से गीदड़ को देखा और बोला, 'गीदड़ भाई, तुम जंगली के जंगली ही रहोगे। संगीत के बारे में तुम क्या जानो?'
गीदड़ ने हाथ जोड़कर कहा, 'मैं संगीत के बारे में कुछ नहीं जानता। केवल अपनी जान बचाना जानता हूँ। तुम अपना बेसुरा राग अलापने की जिद छोड़ो, उसी में हम दोनों की भलाई है।'
गधे ने गीदड़ की बात का बुरा मानकर हवा में दुलत्ती चलाई और कहने लगा, 'तुमने मेरे राग को बेसुरा कहकर मेरी बेइज्जती की है। हम गधे शुद्ध शास्त्रीय लय में रेंकते है। वह मूर्खों की समझ में नहीं आ सकता।'
गीदड़ बोला, 'गधे भाई, मैं मूर्ख जंगली ही सही, पर एक मित्र के नाते मेरी यह सलाह मान लो। अपना मुँह मत खोलो। बाग के चौकीदार जाग जायेंगे।'
गधा हंसा, 'अरे मूर्ख गीदड़! मेरा राग सुनकर बाग के चौकीदार तो क्या, बाग का मालिक भी फूलों का हार लेकर आयेगा और मेरे गले में डाल देगा।'
गीदड़ ने चतुराई से काम लिया और हाथ जोड़कर बोला, 'गधे भाई, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। तुम महान गायक हो। मैं मूर्ख गीदड़ भी तुम्हारे गले में डालने के लिए फूलों की माला लाना चाहता हूँ। मेरे जाने के दस मिनट बाद ही तुम गाना शुरू कर देना ताकि मैं गायन समाप्त होने तक फूल मालाएँ लेकर लौट सकूँ।'
गधे ने बड़े ही गर्व से सहमति में सिर हिलाया। गीदड़ वहाँ से सीधा जंगल की ओर भाग गया। गधे ने उसके जाने के कुछ समय बाद मस्त होकर रेंकना शुरू किया। उसके रेंकने की आवाज सुनते ही बाग के चौकीदार जाग गए और उसी ओर लट्ठ लेकर दौड़े, जिधर से रेंकने की आवाज आ रही थी। वहाँ पहुँचते ही गधे को देखकर चौकीदार बोला, 'यही है वह दुष्ट गधा, जो हमारा बाग चर जा रहा था। चलो आज इसकी अच्छे से खातिरदारी करते है।'
बस सारे चौकीदार डंडों के साथ गधे पर टूट पड़े। कुछ ही देर में गधा पिट-पिटकर अधमरा होकर गिर पड़ा।
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