एक समय की बात है, कई सदियों पहले, एक बूढ़ा व्यापारी रहता था। अपने पूरे जीवन में उसने कड़ी मेहनत की, खरीद और बिक्री की, जिसके परिणामस्वरूप उसने बहुत धन कमाया। जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए, उसके पास अधिक और अधिक धन एकत्र होता गया, लेकिन वह दिन आया जब उसे लगा कि वह इस दुनिया में लम्बे समय तक शेष (जीवित) नहीं रह सकेगा। उसने सोचना शुरू किया कि अपने धन के साथ क्या करना चाहिए।

अब उसके दो बेटे थे। उसने निश्चय किया कि वह अपने धन को उनके बीच में नहीं बाँटेगा, बल्कि वह सब कुछ उसी को दे देगा जो स्वयं को दोनों में अधिक चतुर सिद्ध करेगा। हल की जाने वाली समस्या थी कि यह पता लगाना, दोनों में कौन अधिक चतुर था। उसने, उन्हें परीक्षा देकर इस समस्या को हल करने का निश्चय किया।

नवयुवकों को बुलाकर, उसने उनसे कहा। "यहाँ दो रूपये है। मैं चाहता हूँ कि तुम एक-एक रूपया ले लो और फिर अलग-अलग बाहर जाओं और कुछ खरीद ले लो जिससे यह घर भर जाये। तुम्हें एक रूपये से अधिक खर्च नहीं करना है।"

दोनों बेटों ने उसकी ओर ऐसे देखा जैसे उसने अपनी समझ त्याग दी हो। "सिर्फ एक रूपये से घर भरने के लिए, हम संभवतः किसी भी चीज को पर्याप्त मात्रा में कैसे खरीद सकते है?" उन्होंने स्वयं से पूछा। और वे रूपये लेने से हिचक रहे थे। लेकिन बूढ़े ने उनके कहे अनुसार करने पर जोर दिया। "तुम जाओ," उसने कहा। "और व्यवसाय पर बहुत अधिक समय न लेना। मुझे उम्मीद है कि तुम कुछ दिनों में वापस आ जाओगे।

अत: प्रत्येक नवयुवक ने एक रूपया लिया और बाहर चले गये। पहला बाजार में घूमता रहा, लेकिन उसे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो किसी भी तरह से उसके उद्देश्य की पूर्ति कर सके। दिन भर वह इधर-उधर घूमता रहा, सभी दुकानों में देखता रहा, उसे कुछ नहीं मिला। उसे अधिक और अधिक विश्वास हो गया कि उसके पिता के साथ कुछ गलत हो गया है। वह निराशा में अपनी खोज को छोड़ने ही वाला था जब उसे एक भूसे से लदी हुई बैलगाड़ी दिखाई दी "यह आशान्वित प्रतीत होता है," उसने सोचा। "मुझे आश्चर्य है कि एक रूपये में कितना भूसा मिल सकता है।"

वह गाड़ी के चालक के पास गया और भूसे की कीमत के बारे में पूछताछ की। वहाँ कीमत को लेकर अच्छी सौदेबाजी हुई, लेकिन अन्त में, वह एक रूपये में भूसे का एक भार खरीदने में सक्षम हुआ। (यह उन दिनों की बात है जब कोई चीज एक रूपये में अब की तुलना में एक बड़ी सौदेबाजी करके खरीदी जायेगी।)

अत: वह नवयुवक भूसे सहित लदी गाड़ी को अपने पिता के घर ले गया। बड़ी आशा से, उसने इसका (भूसे का) ढेर घर में लगा दिया। लेकिन जब सब कुछ हो गया, उसने पाया कि फर्श को भी ढकने के लिए पर्याप्त नहीं था, पूरे घर को भरने की तो बात ही छोड़िए।

जब दूसरा बेटा अपने रूपये के साथ बाहर निकला, वह सीधा बाजार को नहीं गया। ऐसा करने के बजाय, वह बैठ गया और सोचना शुरू कर दिया। बहुत देर तक, वह बैठा सोचता रहा कि वह संभवत: क्या खरीद सकता है। अन्त में, शाम के समय, उसे एक विचार आया।

अपने रूपये को लेकर, वह जल्दी से बाजार की ओर चला गया जब तक कि वह एक दुकान पर नहीं आया (पहुँचा) जहाँ मोमबत्तियाँ बेची जाती थी। उसने अपने रूपये मोमबत्तियों पर खर्च किए, जिसमें से उसे काफी संख्या में (मोमबत्तियाँ) मिली। तब, अपनी मोमबत्तियाँ अपने साथ लेकर, वह अपने पिता के घर वापस चला गया। जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसका भाई निराशाजनक रूप से खड़े होकर फर्श पर फैले भूसे को देख रहा था।

अब अंधेरा होने लगा था। जल्दी से दूसरे बेटे ने हर कमरे में दो या तीन मोमबत्तियाँ खड़ी कर दी। फिर उसने उन्हें जलाया। एक बार में घर रोशनी से भर गया।

उसके पिता उससे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "मेरे बेटे, तुमने सच्ची बुद्धिमत्ता दिखाई है। मैं अपना सारा धन तुम्हें सौंपने के लिए तैयार हूँ।"

अब, हम सब एक बड़े घर में रहते है जिसे हम अपना मूल देश कहते है। हम में से प्रत्येक को दिया गया है, किसी को एक रूपया, किसी को दो रूपये, किसी को तीन रूपये और किसी को चार रूपये। ये रूपये वे रूपये नहीं है जिनसे हम चीजें खरीद सकते है, बल्कि ये अलग-अलग शक्तियाँ है जो हमें दी गई है। हम में से प्रत्येक के पास शरीर की शक्तियाँ, मन की शक्तियाँ और चरित्र की शक्तियाँ है।

हम में से प्रत्येक के पास शक्ति, समय और बुद्धि है, जिसका उपयोग किया जा सकता है। जब हम स्कूल छोड़ते है और दुनिया में जाते है, तो हमारी परीक्षा होती है कि हम इन प्रतिभाओं का उपयोग कैसे करने जा रहे है जो हमारे पास है। क्या हम उन्हें बेकार घास (भूसा) खरीदने के लिए इस्तेमाल करने जा रहे है, या हम अपने पूरे घर में रोशनी फैलाने के लिए उनका इस्तेमाल करने जा रहे है, यानी हमारा देश? अगर हम अच्छे नागरिक बनने जा रहे है, तब हम अपनी शक्तियों और क्षमताओं का उपयोग अपने देश के सभी हिस्सों में प्रकाश फैलाने के लिए करेंगे, यानी हम अपने देश की सेवा में स्वयं को खर्च कर देंगे।

कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता जब तक उसके पास अच्छे नागरिक न हो। ताकि अगर हम अपने देश से प्यार करते है और उसकी सेवा करना चाहते है, तो हमें अच्छा नागरिक बनने की कोशिश करनी होगी।

जब हम स्कूल में होते है, तो हमें यही करना चाहिए। हमें स्वयं को नागरिकता का प्रशिक्षण देना चाहिए और अच्छे नागरिकता के गुणों को विकसित करना चाहिए। अगर हम ऐसा करते है, तो, जब हम स्कूल और घर छोड़कर अपने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाते है, तो हम इसे अच्छी नागरिकता के प्रकाश से भर पायेंगे।