इस आर्टिकल में, हम जैन धर्म और बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कुछ विशेष तथ्य प्रस्तुत करने जा रहे है, जो आपकी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होने वाला है।

जैन धर्म
(1) इस धर्म के कुल 24 तीर्थंकर ( ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुब्रतनाथ, नेमिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी ) हुए, जिनमें ऋषभदेव को इस धर्म का संस्थापक माना जाता है।
(2) इस धर्म के तीन प्रमुख त्रिरत्न थे, जो इस प्रकार है –
• सम्यक् ज्ञान – इसका अर्थ होता है कि बिना किसी शंका के सच्चा और पूर्ण ज्ञान।
• सम्यक् दर्शन – इसका अर्थ होता है कि सत् और तीर्थंकरों में विश्वास।
• सम्यक् चरित्र – इसका अर्थ होता है कि सांसारिक विषयों से उत्पन्न सुख-दुःख के प्रति एक समान भाव।
(3) जैन संगीति –
समय |
स्थान |
अध्यक्ष |
शासक |
300 ई. पू. | पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र | चन्द्रगुप्त मौर्य |
512 ई. पू. | वल्लभी | देवर्धिक्षमाश्रमण | Unknown |
(4) इस धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को 'पंचमहाव्रत' में एकीकृत किया गया था, जो इस प्रकार है –
• सत्य – हमेशा सत्य बोलना चाहिए और भय अथवा हास्य विनोद में कभी भी असत्य नहीं बोलना चाहिए।
• अहिंसा – समस्त जीवों के प्रति दया का भाव रखना चाहिए।
• अस्तेय – कभी चोरी नहीं करना चाहिए और न ही अनुमति के बिना, किसी की कोई वस्तु लेनी चाहिए।
• अपरिग्रह – संग्रह करने की प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए।
• ब्रह्मचर्य – अपनी इन्द्रियों पर स्वयं का नियंत्रण होना चाहिए।
(5) महावीर स्वामी की मृत्यु के पश्चात् उनकी शिक्षाओं को लेकर जैन मतानुयायियों के बीच मतभेद प्रारम्भ हो गया, फलस्वरूप यह धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। इन सम्प्रदायों में एक सम्प्रदाय 'श्वेताम्बर' कहलाया जिसके समर्थक स्थूलभद्र हुए और दूसरा सम्प्रदाय 'दिगम्बर' कहलाया जिसके समर्थक भद्रबाहु हुए, जिनका उल्लेख कुछ इस प्रकार है -
श्वेताम्बर –
• यह सम्प्रदाय स्त्रियों के मोक्ष का पक्षधर था।
• इस सम्प्रदाय के लोग सफेद वस्त्र धारण करते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग जैन आगमों में विश्वास करते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग स्वयं को पार्श्वनाथ का अनुयायी मानते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ को स्त्री मानते थे।
दिगम्बर –
• यह संप्रदाय स्त्रियों के मोक्ष का विरोधी था।
• इस सम्प्रदाय के लोग वस्त्र धारण नहीं करते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग पूर्वो (मौलिक ग्रन्थ) में विश्वास करते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग स्वयं को महावीर स्वामी का अनुयायी मानते थे।
• इस सम्प्रदाय के लोग जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ को पुरुष मानते थे।
(6) इस धर्म में कर्मकाण्डों का घोर विरोध किया गया है।
(7) जैन तीर्थंकरों के बारे में जानकारी भद्रबाहु रचित 'कल्पसूत्र' से मिलती है।
(8) इस धर्म के लोगों ने स्थानीय भाषा के रूप में 'प्राकृत' भाषा का प्रयोग किया गया।
(9) इस धर्म को मानने वाले प्रमुख राजा उदयिन, वंदराजा, चन्द्रगुप्त मौर्य, खाखेल, अमोघवर्ष और चंदेल थे।
(10) इस धर्म में आत्मा के अस्तित्व के विषय में विश्वास करते हुए उसकी अनेकता के बारें में बात की गई है, किन्तु ईश्वर की सत्ता पर अविश्वास भी जरूर जताया गया है।
(11) इस धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या और शरीर त्यागने पर बल दिया गया है।
(12) इस धर्म का प्रचार-प्रसार भारत के बाहर तो ज्यादा नहीं हुआ, किन्तु इसका भारतीय संस्कृति पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ा।
(13) राजस्थान में स्थित दिलवाड़ा मंदिर और मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो मंदिर जैन कला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
(14) इस धर्म के सिद्धांतों को मानव-जीवन में अपनाना बेहद कठिन है।
बौद्ध धर्म
(1) इस धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।
(2) इस धर्म के तीन प्रमुख त्रिरत्न थे, जो इस प्रकार है –
• बुद्ध – जागृत और अनंत ज्ञानी मनुष्य, जिसने खुद के प्रयासों से बुद्धत्व को प्राप्त किया, उसे 'बुद्ध' कहा गया।
• धम्म – बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को 'धम्म' कहा गया।
• संघ – बौद्ध भिछुओं और उपासकों के संघटन को 'संघ' कहा गया।
(3) बौद्ध संगीति –
समय |
स्थान |
अध्यक्ष |
शासक |
483 ई. पू. | राजगृह | महाकश्यप | अजातशत्रु |
383 ई. पू. | वैशाली | सबाकामी | कालाशोक |
255 ई. पू. | पाटलिपुत्र | मोगलिपुत्ततिस्म | अशोक |
ई. की प्रथम शताब्दी | कुण्डलवन | वसुमित्र | कनिष्क |
(4) इस धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को 'आर्य सत्य' और 'अष्टांगिक मार्ग' में एकीकृत किया गया था, जो इस प्रकार है –
आर्य सत्य –
• दुःख – इसका अर्थ होता है कि इस जीवन में दुःख ही दुःख है।
• दुःख-समुदाय – इसका अर्थ होता है कि इस दुःख का मुख्य कारण तृष्णा है।
• दुःख-निरोध – इसका अर्थ होता है कि इस दुःख को दूर करने के लिए उसके कारण का निवारण होना आवश्यक है।
• दुःख-निरोधगमिनी प्रतिपदा – इसका अर्थ होता है कि यह दुःख निरोधक मार्ग ही अष्टांगिक मार्ग है।
अष्टांगिक मार्ग –
• सम्यक् दृष्टि – इसका अर्थ होता है कि सत्य-असत्य, उचित-अनुचित का भेद करके ही किसी कार्य को करना चाहिए।
• सम्यक् संकल्प – इसका अर्थ होता है कि हिंसा से रहित संकल्प करना चाहिए।
• सम्यक् वचन – इसका अर्थ होता है कि सदैव धर्मसम्मत और मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
• सम्यक् कर्म – इसका अर्थ होता है कि सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए।
• सम्यक् जीविका – इसका अर्थ होता है कि सदैव सदाचार और परिश्रमपूर्वक धन का अर्जन करना चाहिए।
• सम्यक् व्यायाम – इसका अर्थ होता है कि विवेकपूर्ण प्रयत्न और परिश्रम युक्त जीवन-यापन करना चाहिए।
• सम्यक् स्मृति – इसका अर्थ होता है कि अपने कर्मो के प्रति विवेक और सावधानी का निरन्तर स्मरण रखना चाहिए।
• सम्यक् समाधि – इसका अर्थ होता है कि अपने चित्त की समुचित एकाग्रता बनाए रखना चाहिए।
(5) बौद्ध सिद्धांतों को लेकर आपसी मतभेद के कारण, कनिष्क के शासनकाल में यह धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया, जिसमें एक सम्प्रदाय 'हीनयान' कहलाया जिसका अर्थ होता है निम्न और दूसरा सम्प्रदाय 'महायान' कहलाया जिसका अर्थ होता है उत्कृष्ट, जिनका उल्लेख कुछ इस प्रकार है –
हीनयान –
• इस सम्प्रदाय के ग्रन्थ सामान्यत: 'पालि' भाषा में है।
• इस सम्प्रदाय के लोग मूल सिद्धान्तों में विश्वास करते थे।
• यह सम्प्रदाय बौद्ध धर्म का मूल स्वरूप है, जिसका अर्थ होता है 'निम्न'।
• इस सम्प्रदाय के लोग गौतम बुद्ध को 'महापुरुष' के रूप में मानते थे।
• इस सम्प्रदाय के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयास से मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।
महायान –
• इस सम्प्रदाय के ग्रन्थ सामान्यत: 'संस्कृत' भाषा में है।
• इस सम्प्रदाय के लोग मूल सिद्धान्तों में समय के साथ परिवर्तन कर उसे अपनाने में विश्वास करते थे।
• यह सम्प्रदाय बौद्ध धर्म का नवीन स्वरूप है, जिसका अर्थ होता है 'उत्कृष्ट'।
• इस सम्प्रदाय के लोग गौतम बुद्ध को 'ईश्वर' के रूप में मानते थे।
• इस सम्प्रदाय के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समस्त मानव कल्याण के बारें में कार्य करना चाहिए।
(6) इस धर्म में जाति-पाँति का घोर विरोध किया गया है।
(7) बौद्ध साहित्य के बारे में जानकारी त्रिपिटक से मिलती है। ये इस प्रकार है –
• विनय पिटक – इसमें संघ सम्बन्धी नियमों, दैनिक आचार विचार और विधि निषेधों का संग्रह है।
• सूत्त पिटक – बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों और उपदेशों का संग्रह है।
• अभिधम्म पिटक – इसमें दार्शनिक सिद्धान्तों का संग्रह है।
(8) इस धर्म के लोगों ने स्थानीय भाषा के रूप में 'पालि' भाषा का प्रयोग किया गया।
(9) इस धर्म को मानने वाले प्रमुख राजा बिम्बिसार, उदयिन और प्रसेनजित थे।
(10) इस धर्म में आत्मा के अस्तित्व के विषय के बारें में कोई जानकारी नहीं है, किन्तु ईश्वर की सत्ता पर अविश्वास जरूर जताया गया है।
(11) इस धर्म में मध्यम मार्ग का अनुसरण करने पर बल दिया गया, जिसके अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर तप और साधना की आवश्यकता नहीं होती है।
(12) इस धर्म के माध्यम से भारत का सम्पर्क विदेशों में भी बढ़ा। बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार उनके अनुयायियों ने दक्षिण एशिया के कई देश जैसे - जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया, चीन, बर्मा इत्यादि में जाकर किया, जिससे इस धर्म से आकर्षित होकर विदेशों में भी इसे अपनाया गया।
(13) महाराष्ट्र में स्थित अजंता और एलोरा की गुफाओं में बने चित्र बौद्ध कला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
(14) यह धर्म, जैन धर्म की तुलना में अधिक व्यावहारिक है जिसके सिद्धांतों को मानव-जीवन में अपनाना बेहद सरल है।
Important Points
• दोनों ही धर्मों में संघों की स्थापना हुई।
• दोनों ही धर्मों में ईश्वर की सत्ता पर अविश्वास जताया गया।
• दोनों ही धर्मों में स्थानीय भाषा का प्रयोग देखने को मिला।
• दोनों ही धर्म बाद में अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित हुए।
• दोनों ही धर्मों में मनुष्य के जीवन का अन्तिम लक्ष्य निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करना बताया गया।
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