इस आर्टिकल में, हम सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों के बारें में बात करेंगे। इस सभ्यता से सम्बन्धित यहाँ पर जो भी जानकारी उपलब्ध करायी जाएगी वह केवल आपके एग्जाम से सम्बन्धित होगी, अन्यथा कुछ भी नहीं।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज
1921 ई0 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर दयाराम साहनी ने हड़प्पा (मांटगुमरी, पाकिस्तान) नामक स्थल पर उत्खनन कार्य कराया, जहाँ पर इस प्राचीन सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम प्राप्त हुए और इस वजह से इस सभ्यता की खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है। इस सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थल पर प्राप्त हुए, इस वजह से इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति
इस सभ्यता की उत्पत्ति के विषय में प्रमाणिक रूप कुछ कह पाना सम्भव नहीं है क्योंकि इसे आज तक संतोषजनक तरीके से पढ़ा नहीं जा सका है। इस सभ्यता के विषय में जो भी जानकारी दी गई है वह केवल विद्वानों के अनुमान और उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर है।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
इस सभ्यता के प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इसका विस्तार अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के क्षेत्रों तक है।
सिंधु घाटी सभ्यता की समय अवधि
इस सभ्यता की समय अवधि के सम्बन्ध में विद्वानों के बीच मतभेद है। रेडियो कार्बन के आधार पर इस सभ्यता की समय अवधि 2300 ई0 पू0 1750 ई0 पू0 के बीच मानी गई है।
सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए मुख्य अवशेष
• लोथल और सुरकोटदा नामक स्थल से बन्दरगाह होने के साक्ष्य मिले है।
• हड़प्पा नामक स्थल से शवों को दफनाने और मोहनजोदड़ो नामक स्थल से शवों को जलाने के साक्ष्य मिले है।
• हड़प्पा नामक स्थल से स्वस्तिक चिन्ह के अवशेष मिले है जिसका प्रयोग सूर्योपासना का अनुमान लगाने में किया जाता है।
• हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक स्थल से भवन निर्माण के लिए प्रयोग की जाने वाली ईटें प्राप्त हुई है जिनमें 28 सेमी × 14 सेमी × 7 सेमी अर्थात् (4 : 2 : 1) के आकार की ईटों की बहुलता है।
• अभी तक प्राप्त अवशेषों के आधार पर केवल इन स्थलों को ही बड़े नगर (हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन, लोथल, धौलावीरा, Ganeriwala, राखीगढ़ी) की संज्ञा दी गई है।
• मोहनजोदड़ो नामक स्थल से एक सार्वजानिक भवन के अवशेष प्राप्त हुए है जिसकी लम्बाई 242 फीट, चौड़ाई 115 फीट और बाहरी दीवार की मोटाई 5 फीट है। इस भवन में कई सारे विशाल कक्ष है जिससे यह प्रतीत होता है कि इसका उपयोग जनसभा अथवा अधिवेशन के लिए किया जाता रहा होगा।
• मोहनजोदड़ो नामक स्थल से एक विशाल स्नानागार के अवशेष प्राप्त हुए है जो कि चौकोर आँगन के रूप में स्थित है। इस आँगन के चारों तरफ गैलरी और कमरे बने हुए है और मध्य भाग में स्नानकुंड है जिसकी लम्बाई 29 फीट, चौड़ाई 23 फीट और गहराई 8 फीट है।
• मोहनजोदड़ो नामक स्थल से एक विशाल अन्नागार के अवशेष प्राप्त हुए है जो इस सभ्यता का सबसे बड़ा भवन है जिसकी लम्बाई 169 फीट और चौड़ाई 133 फीट है। इस विशाल अन्नागार में 27 चबूतरे बनाये गये है जिनके बीच-बीच में हवा के लिए खाली स्थान छोड़ दिया गया है और इन चबूतरों के ऊपर लकड़ी का कटहरा है जिस पर अनाज रखने की जगह है। विद्वानों ने इस विशाल अन्नागार की पहचान राजकीय अन्न भण्डार गृह के रूप में की है।
• इस सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात राज्य में मिले है और इसके अतिरिक्त पहली बार कपास उगाने की श्रेय भी इस सभ्यता के लोगों को ही जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण उत्खनन स्थल
• हड़प्पा – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1921 ई0 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के पास मांटगोमेरी (पंजाब, पाकिस्तान) नामक जिले में शुरू किया गया।
• मोहनजोदड़ो – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1922 ई0 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के पास लरकाना (सिंध, पाकिस्तान) नामक जिले में शुरू किया गया।
• सुतकागेंडोर – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1927 ई0 में ऑरेल स्टाइन के नेतृत्व में दाश्क नदी के पास बलूचिस्तान (पाकिस्तान) नामक प्रांत में शुरू किया गया।
• चन्हूदड़ो – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1931 ई0 में एन0 गोपाल मजूमदार के नेतृत्व में सिंधु नदी के पास सिंध (पाकिस्तान) नामक प्रांत में शुरू किया गया।
• कालीबंगन – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1953 ई0 में अमलानंद घोष के नेतृत्व में घग्गर नदी के पास हनुमानगढ़ (राजस्थान, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• लोथल – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1955 ई0 में एस0 रंगनाथ राव के नेतृत्व में भोगवा नदी के पास अहमदाबाद (गुजरात, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• रंगपुर – इस स्थल का उत्खनन कार्य एस0 रंगनाथ राव के नेतृत्व में मादर नदी के पास काठियावाड़ (गुजरात, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• कोटदीजी – इस स्थल का उत्खनन कार्य फजल अहमद खान के नेतृत्व में सिंधु नदी के पास सिंध (पाकिस्तान) नामक प्रांत में शुरू किया गया।
• रोपड़ – इस स्थल का उत्खनन कार्य यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में सतलज नदी के पास रोपड़ (पंजाब, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• आलमगीरपुर – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1958 ई0 में यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में हिंडन नदी के पास मेरठ (उत्तर प्रदेश, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• धौलावीरा – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1967 ई0 में जगत पति जोशी के नेतृत्व में कच्छ (गुजरात, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• सुरकोटदा – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1972 ई0 में जगत पति जोशी के नेतृत्व में कच्छ (गुजरात, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• बनावली – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1973 ई0 में रवीन्द्र सिंह बिष्ट के नेतृत्व में रंगोई नदी के पास हिसार (हरियाणा, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
• धौलावीरा – इस स्थल का उत्खनन कार्य 1990 ई0 में रवीन्द्र सिंह बिष्ट के नेतृत्व में कच्छ (गुजरात, भारत) नामक जिले में शुरू किया गया।
सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित प्रमुख तथ्य
• इस सभ्यता के लोग लेखन कला के ज्ञान से परिचित थे और इनकी लेखन प्रणाली अक्षरसूचक व चित्रात्मक आधारित है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इस सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक थी, जिसे विद्वानों के लिए आज भी पढ़ना बहुत मुश्किल है।
• इस सभ्यता के लोग सफाई व स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते थे और उन्होंने मकानों से गन्दा जल निकालने के लिए पक्की नालियों का निर्माण, आवागमन के लिए सड़कों व गलियों की व्यवस्था भी की हुई थी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि यह सभ्यता नगरीय सभ्यता का उत्कृष्ट स्वरूप प्रस्तुत करती है और इसे कांस्य युग में भी रखा जा सकता है।
• इस सभ्यता में स्त्रियों को विशेष स्थान दिया गया है। खुदाई के दौरान जितने भी मानव आकृतियों के चित्र मिले है उसमें अधिकांश स्त्रियों के है, जिससे यह ज्ञात होता है कि स्त्रियाँ पुरूषों के सामान सामाजिक और धार्मिक कार्यो में भाग लेती थी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि सभ्यता में परिवार मातृप्रधान था।
• इस सभ्यता के लोगों के जीवन में कृषि का प्रमुख स्थान था। इनके द्वारा बोई जाने वाली प्रमुख खाद्य फसलें गेहूँ व जौ थी और इसके अतिरिक्त ये चावल, राई, मटर, टिल, सरसों, ज्वार, बाजरा की भी खेती करते थे।
• इस सभ्यता के लोग पशुपति (शिव) नामक देवता को पूजनीय मानते थे और इसके अलावा इस सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सबसे अधिक प्रचलित थी।
• इस सभ्यता में पुरूषों और स्त्रियों के पहनावे में कोई खास अन्तर नहीं था। पुरूष लोग प्राय: धोती पहनते थे और कन्धे पर शाल अथवा दुपट्टे का प्रयोग करते थे और स्त्रियाँ धोती व घाघरा पहनती थी।
• इस सभ्यता के लोगों के जीवन में कृषि के बाद पशुपालन का विशेष स्थान था। बैल, भैंस, बकरी, सूअर, गधा, कुत्ता, बिल्ली, हाथी, घोड़ा, सांड ऊँट इत्यादि इनके विशेष पालतू पशु थे, जिनमें ऊँट और घोड़े का कोई खास प्रयोग नहीं था।
• इस सभ्यता से सम्बन्धित जितनी भी मुद्राएँ अभी तक प्राप्त हुई है उनमें आमतौर पर सेलखड़ी (Steatite) का प्रयोग देखने को मिला है और इसके अलावा खुदाई के दौरान जितने भी माप-तौल के बाट प्राप्त हुए है वह सभी 16 के गुणक में है।
सिंधु घाटी सभ्यता का विनाश
इस सभ्यता के विनाश होने के ठीक कारण तो ज्ञात नहीं है। समय-समय पर इसके विनाश के कई कारण बताये गये है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इसके विनाश का मुख्य कारण सम्भवत: बाढ़ है क्योकि अभी तक इस सभ्यता से सम्बन्धित जितने भी स्थल खोजे गए है वे सभी किसी न किसी नदी की किनारे है।
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