बिन्दियाँ अपनी माँ और भाई के साथ गलवान की पहाड़ी में रहती थी। उसके भाई का नाम बीजू था। उसका परिवार बेहद ही सादा जीवन व्यतीत कर रहा था। पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। उनके पास कुछ जमीन और कुछ गायें थी, जिससे वह अपना गुजर-बसर कर रहे थे।
एक दिन गायों को घर ले जाते समय उन्हें कुछ लोग पिकनिक मनाते हुए दिखाई दिए, जिनके पास एक बहुत ही सुन्दर नीली छतरी थी, जिसने बिन्दियाँ के मन को मोहित कर लिया। उनमें से एक महिला ने बिन्दियाँ के गले में एक बाघ का नाखून लटका हुआ देखा। गांव के लोग इसे सौभाग्य के प्रतीक के रूप में गले में पहनते है। जब उसने बिन्दियाँ से उस बाघ के नाखून को खरीदने का अनुरोध किया, तो बिन्दियाँ ने उसके बदले में वह नीली छतरी मांगी। फिर उन्होंने उसे वह छतरी दे दी। उस छतरी को पाकर बिन्दियाँ बहुत खुश थी। वह उसे हर समय खुला रखती थी और वह जहाँ भी जाती, उसे अपने साथ ले जाती। वह रेशमी नीली छतरी पूरे गाँव में प्रसिद्ध हो गई थी। गांव के अधिकांश लोग बिन्दियाँ से ईर्ष्या करते थे, क्योंकि इतनी खूबसूरत छतरी पहले कभी किसी ने नहीं देखी थी। बाकी गांव के लोग उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे, ताकि बिन्दियाँ वह छतरी उन्हें कुछ पल के लिए थामने के लिए दे दे। जल्द ही बारिश का मौसम आया और बहुत बारिश हुई। बिन्दियाँ के लिए वह छतरी बहुत काम आई। इतनी धूप का सामना करने से, वह रेशमी नीली छतरी फीकी पड़ गई थी, तब भी बिन्दियाँ का प्यार और लोगों की ईर्ष्या उसके प्रति कम नहीं हुई थी।
वह छतरी गांव के एक दुकानदार राम भरोसे को बहुत आकर्षक लगी, उसने बिन्दियाँ से उसे खरीदने की इच्छा जाहिर की, लेकिन बिन्दियाँ ने साफ मना कर दिया। वह नीली छतरी राम भरोसे के मन में बैठी थी। बारिश के समय स्कूल बन्द थे। राम भरोसे ने दूसरे गांव के एक लड़के को मदद के लिए अपनी दुकान में काम पर रखा था। उसका नाम राजाराम था। राजाराम एक छोटा चालाक लड़का था। जब उसे छतरी के प्रति राम भरोसे के मोह के बारे में पता चला, तो उसने राम भरोसे के साथ तीन रूपये में सौदा कर लिया। मौका पाकर उसने बिन्दियाँ की छतरी चुरा ली। उसके हाथ बीजू के पैर में गिर गए, जब बीजू ने पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया, तो उसने राम भरोसे का नाम लिया। उसने उसे धमकी दी थी कि छतरी चुराकर लाओ, वरना उसे दुकान से बाहर निकाल देगा। सभी ने इसे स्वीकार भी किया, क्योंकि राम भरोसे का नीली छतरी के प्रति मोह जगजाहिर था। धीरे-धीरे लोगों ने राम भरोसे पर भरोसा करना बन्द कर दिया, उसकी दुकान की बिक्री बहुत कम हो गई, लोग दूर की दुकानों से सामान लेने लगे। खर्च को कम करने के लिए राम भरोसे ने राजाराम को नौकरी से निकाल दिया था। अब वह बहुत अकेला था और बहुत दु:खी भी। उसकी कोई बिक्री नहीं हो रही थी। दुकान में कुछ भी नहीं था और कोई भी उसके पास नहीं आता था। बीजू और बिन्दियाँ रोज उसकी दुकान के सामने से गुजरते थे।
कुछ दिनों के बाद बिन्दियाँ, राम भरोसे की दुकान पर टॉफी लेने गई। राम भरोसे पैरों तले दंग रह गया। जब वह चली गई, तो राम भरोसा ने देखा कि वह अपनी छतरी की बात भूल गई है। राम भरोसे हमेशा से उससे क्या चाहता था? वह खुद उसके पास आई, लेकिन उसे उस छतरी को छिपाना पड़ा। उसने फिर सोचा, मेरा क्या फायदा, न धूप में निकलना और न ही बारिश में। उसने बिन्दियाँ से कहा - तुम अपनी छतरी वाली बात भूल गई। बिन्दियाँ ने सिर हिलाया और कहा - बस उसे रख लेना। उसने कहा कि वह गांव की सबसे खूबसूरत छतरी है। बिन्दियाँ ने कहा, मुझे पता है कि छतरी ही सब कुछ नहीं है, और वह चलने लगी। अब वह छतरी राम भरोसे की हो गई थी। बिन्दियाँ ने उसे तोहफे में दिया है, इसलिए वह सबको बताता था। अब गांव वाले वापस उस पर भरोसा करने लगे थे। धीरे-धीरे उसकी दुकान चलने लगी। अब जब भी बीजू और बिन्दियाँ उसकी दुकान पर आते तो वह उनकी चाय में दूध और तश्तरी डाल देता।
एक दिन राम भरोसे की दुकान की छत पर एक भालू आया, जो भोजन की तलाश में था। अगले दिन राम भरोसे ने उसके नाखून को चांदी के लॉकेट में फिट कर दिया और उस लॉकेट को चांदी की पतली चेन में डाल दिया। जब बिन्दियाँ शाम को उसकी दुकान के पास से गुजर रही थी, तो उसने उसे बुलाया और बिन्दियाँ को लॉकेट दे दिया। बिन्दियाँ को यह बहुत सुन्दर लगा, उसने कहा कि उसके पास इसे खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है। तब राम भरोसे ने कहा, 'भालू के नाखून, बाघ के नाखूनों से बेहतर होते है इसलिए उसे पैसे नहीं चाहिए।' उसने वह लॉकेट बिन्दियाँ को उपहार में दिया था। बिन्दियाँ उस सुन्दर लॉकेट को पाकर बहुत खुश हुई। राम भरोसे, बिन्दियाँ की वो मुस्कान कभी नहीं भूला। रात होने से पहले बिन्दियाँ अपनी गायों को लेकर सकुशल अपने घर वापस पहुँच गई।
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