पारिस्थितिकी की शाखाएँ (Branches of Ecology)
• स्वपारिस्थितिकी (Autecology)
इसके अन्तर्गत किसी एक जीव विशेष या एक ही जाति के जीवों के जीवन पर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
• संपारिस्थितिकी (Synecology)
इसके अन्तर्गत किसी एक स्थान पर मिलने वाले समस्त जीव समूह के जीवन पर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
• पारिस्थितिक तंत्रीय (Ecosystemology)
इसके अन्तर्गत सभी जैविक और अजैविक घटकों के बीच पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
ऊर्जा के संसाधन (Resources of Energy)
• परम्परागत ऊर्जा के संसाधन (Conventional Energy Resources)
ऐसे ऊर्जा के संसाधन जिनका भण्डार धरती पर सीमित मात्रा में है, जो कभी भी समाप्त हो सकते है और इन्हें फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, परम्परागत ऊर्जा के संसाधन कहलाते है। इस प्रकार के ऊर्जा के संसाधन को अनवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन (Non-Renewable Energy Resources) भी कहा जाता है। उदाहरण - कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, परमाणु शक्ति से प्राप्त होने वाली ऊर्जा।
• गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधन (Non-Conventional Energy Resources)
ऐसे ऊर्जा के संसाधन जिन्हें फिर से प्राप्त किया जा सकता है, गैर परम्परागत ऊर्जा के संसाधन कहलाते है। इस प्रकार के ऊर्जा के संसाधन को नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन (Renewable Energy Resources) भी कहा जाता है। उदाहरण - पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा, जल ऊर्जा, सौर ऊर्जा कृषि अपशिष्टों एवं मानव मल-मूत्र से प्राप्त होने वाली ऊर्जा।
जीवमण्डल के घटक (Components of Biosphere)
जैविक घटक (Biotic Components)
इसके अन्तर्गत सजीव वातावरण आता है, जिन्हें निम्न भागों में बांटा गया है -
• उत्पादक (Producers)
इसके अन्तर्गत हरे प्रकाश संश्लेषी पौधों को रखा गया है। ये भोजन का निर्माण स्वयं करते है।
• उपभोक्ता (Consumers)
इसके अन्तर्गत जन्तुओं को रखा गया है। ये भोजन के लिए दूसरों पर आश्रित रहते है। इन्हें निम्न भागों में बांटा गया है -
(I) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers)
इसके अन्तर्गत शाकाहारी जन्तु आते है जो अपना भोजन सीधे हरे पौधों से प्राप्त करते है। उदाहरण - खरगोश, बकरी, टिड्डा, चूहा, हिरन, भैंस, गाय, हाथी आदि।
(II) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondry Consumers)
इसके अन्तर्गत मांसाहारी जन्तु आते है जो अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ताओं से प्राप्त करते है। उदाहरण - मेंढक, गिरगिट, सांप, छिपकली, मैना, लोमड़ी, भेड़िया आदि।
(III) तृतीयक उपभोक्ता (Teritary Consumers)
इसके अन्तर्गत मांसाहारी जन्तु आते है जो अपना भोजन द्वितीयक उपभोक्ताओं से प्राप्त करते है। उदाहरण - बाज, बड़ी मछलियाँ, चिड़िया आदि।
Note - इसके अलावा कुछ जन्तु एक से अधिक श्रेणी के उपभोक्ता होते है जो कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों हो सकते है। ऐसे जन्तुओं को सर्वभक्षी कहते है। उदाहरण - बिल्ली, कुत्ता आदि।
• अपघटक (Decomposers)
इसके अन्तर्गत सूक्ष्म जीवों (जैसे - जीवाणु, कवक) को रखा गया है। ये उत्पादक और उपभोक्ताओं के मृत शरीरों को सरल यौगिकों में अपघटित कर देते है।
अजैविक घटक (Abiotic Components)
इसके अन्तर्गत निर्जीव वातावरण आता है, जिन्हें निम्न भागों में बांटा गया है -
• अकार्बनिक (Inorganic)
इसके अन्तर्गत जल, खनिज लवण (जैसे - पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, सल्फर, फॉस्फोरस के लवण), वायु की गैसें (जैसे - ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, अमोनिया) आती है।
• कार्बनिक (Organic)
इसके अंतर्गत कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा आते है।
• भौतिक (Physical)
इसके अन्तर्गत जलवायु सम्बन्धी कारक (जैसे - वायु, प्रकाश, ताप, विद्युत) आते है।
खाद्य श्रृंखला (Food Chain) और खाद्य जाल (Food Web)
खाद्य श्रृंखला (Food Chain)
1. यह एक सरल प्रकार की संरचना है, जिसमें ऊर्जा का स्थानांतरण एक जीव से दूसरे जीव में होता है।
2. इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए एक पथ से होकर गुजरता है।
3. इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटनकर्त्ता के बीच सम्बन्ध, सीधी कड़ी (श्रृंखला) के रूप में होता है।
4. इस श्रृंखला में जीवों की संख्या कम होती है।
2. इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए एक पथ से होकर गुजरता है।
3. इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटनकर्त्ता के बीच सम्बन्ध, सीधी कड़ी (श्रृंखला) के रूप में होता है।
4. इस श्रृंखला में जीवों की संख्या कम होती है।
खाद्य जाल (Food Web)
1. यह एक जटिल प्रकार की संरचना है, जिसमें विभिन्न खाद्य श्रंखलाएँ परस्पर मिलकर खाद्य जाल बनती है।
2. इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए कई पथ से होकर गुजरता है।
3. इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटनकर्त्ता के बीच सम्बन्ध, जाल के रूप में होता है।
4. इस जाल में जीवों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है।
2. इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए कई पथ से होकर गुजरता है।
3. इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटनकर्त्ता के बीच सम्बन्ध, जाल के रूप में होता है।
4. इस जाल में जीवों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है।
पारिस्थितिक पिरामिड (Ecological Pyramids)
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में एक खाद्य शृंखला के विभिन्न घटकों जैसे - उत्पादकों एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या, जीवभार एवं संचित ऊर्जा में परस्पर एक सम्बन्ध होता है। इन सम्बन्धों को जब रेखीय चित्र के रूप में दर्शाया जाता है तो इसे पारिस्थितिक पिरामिड कहते है। इन्हें मुख्यत: तीन प्रकार से दर्शाया जाता है जो कि इस प्रकार है -
• जीव-संख्या का पिरामिड (Pyramid of Numbers)
जिस पिरामिड द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादकों एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या के सम्बन्ध का बोध होता है, उसे जीव-संख्या का पिरामिड कहते है। इस प्रकार के पिरामिड में आधार पर जीवों की संख्या बहुत अधिक होती है और जैसे-2 शीर्ष की ओर बढ़ते जाते है, जीवों की संख्या कम होती जाती है। इस प्रकार के पिरामिड सीधे और उल्टे दोनों प्रकार से बनाये जा सकते है।
• जीवभार का पिरामिड (Pyramid of Biomass)
जिस पिरामिड द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादकों एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के जीवभार के सम्बन्ध का बोध होता है, उसे जीवभार का पिरामिड कहते है। इस प्रकार के पिरामिड में आधार पर जीवभार अधिक होता है और जैसे-2 शीर्ष की ओर बढ़ते जाते है, जीवों की संख्या कम होती जाती है और इस वजह से जीवभार भी घटता चला जाता है। इस प्रकार के पिरामिड सीधे और उल्टे दोनों प्रकार से बनाये जा सकते है।
• ऊर्जा का पिरामिड (Pyramid of Energy)
जो पिरामिड किसी पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न पोषक स्तरों के जीवधारियों द्वारा प्रयोग में लाई गई ऊर्जा के सम्पूर्ण परिमाण का बोध कराता है, उसे ऊर्जा का पिरामिड कहते है। किसी खाद्य शृंखला के प्रत्येक स्तर पर उपभोक्ता केवल अपने पिछले स्तर की ऊर्जा का केवल 10% ही अपने शारीरिक भार में रूपांतरित कर पाता है। अत: किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के मूल उत्पादकों में अत्यधिक ऊर्जा मिलेगी और प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता में उससे कम एवं उसकी अगली श्रेणी में उससे कम तथा सबसे उच्चतम श्रेणी के उपभोक्ता में सबसे कम ऊर्जा मिलेगी। इस प्रकार के पिरामिड हमेशा सीधे बनाये जाते है।
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