पृथ्वी पर उपलब्ध जल वाष्पीकरण के दौरान वाष्प के रूप में वायुमण्डल में पहुँचता है और तापमान कम होने पर वह संघनित होता है जिसके फलस्वरूप बादलों का निर्माण होता है। बादल में अनेक छोटे-2 जलकण होते है और जब वायुमण्डल इन जलकणों का भार नहीं सह पाता तो ये जलकण बूँदों के रूप में पृथ्वी पर गिरते है, जिसे वर्षा कहते है। प्रत्येक बूँद का व्यास लगभग 6 मिलीमीटर तक होता है। जब वर्षा के बूँदों की तीव्रता कम होती है तो उसे फुहार कहते है। प्रत्येक फुहार का व्यास लगभग 0.5 मिलीमीटर तक होता है।

वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall)

यह मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है जो कि इस प्रकार है -

संवाहनीय वर्षा (Convectional Rainfall)

जब वायु गर्म हो जाती है तो संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है और ऊपर उठकर फैल जाती है जिससे तापमान कम होने लगता है। फलस्वरूप हवाएँ ठण्डी हो जाती है जो बादलों का निर्माण करती है और इन्हीं बादलों से अत्यधिक गरज एवं चमक के साथ इस प्रकार की वर्षा होती है। इस प्रकार की वर्षा विषुवत रेखीय प्रदेशों में देखने को मिलती है। उदाहरण - भारत में होने वाली ग्रीष्म ऋतु में वर्षा।

चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rainfall)

चक्रवात के मध्य भाग में, जब अलग-2 तापमान वाली हवाएँ आपस में मिलती है तो ठण्डी हवाएँ गर्म हवाओं को ऊपर की ओर धकेलती है और ऊपर उठकर फैल जाती है जिससे तापमान कम होने लगता है। फलस्वरूप हवाएँ ठण्डी हो जाती है जो बादलों का निर्माण करती है और इन्हीं बादलों से इस प्रकार की वर्षा होती है। उदाहरण - भारत में होने वाली शीत ऋतु में वर्षा।

पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall)

जब गर्म हवाओं के मार्ग में कोई अवरोध जैसे पर्वत या पठार आ जाता है तो ये हवाएँ इन्हीं अवरोधकों के सहारे ऊपर उठने लगती है और ऊपर उठकर फैल जाती है जिससे तापमान कम होने लगता है। फलस्वरूप हवाएँ ठण्डी हो जाती है जो बादलों का निर्माण करती है और इन्हीं बादलों से इस प्रकार की वर्षा होती है। जिस पर्वतीय ढाल पर यह वर्षा होती है, उसे पोषित (पवनाभिमुख) क्षेत्र कहते है और इसके विपरीत जिस पर्वतीय ढाल पर वर्षा नहीं होती, उसे वृष्टि छाया प्रदेश कहते है।