इस आर्टिकल में, हम इतिहास के प्रमुख समाज सुधारक संगठन और उनके संस्थापक की बात करने वाले है जिनके प्रयास से भारतीय समाज कई सुधार हुए। इस टॉपिक में हमारी पूरी कोशिश है कि आपको सही और गुणवत्ता पूर्ण जानकारी दी जाए।

ब्रह्म समाज
इसकी स्थापना 1828 ई0 में राजाराम मोहन राय के द्वारा कलकत्ता में की गई। इसके द्वारा निम्न कार्य किये गये –
• सती प्रथा का अन्त।
• स्त्रियों की शिक्षा पर जोर।
• विधवा विवाह का समर्थन।
• पश्चिमी शिक्षा के प्रसार पर बल।
• बहु विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, जातिवाद और अस्पृश्यता का विरोध।
• सती प्रथा का अन्त।
• स्त्रियों की शिक्षा पर जोर।
• विधवा विवाह का समर्थन।
• पश्चिमी शिक्षा के प्रसार पर बल।
• बहु विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, जातिवाद और अस्पृश्यता का विरोध।
साइंटिफिक सोसाइटी
इसकी स्थापना 1864 ई0 में सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में की, जिसका उद्देश्य मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा से अवगत कराना और मुसलमानों के दृष्टिकोण को आधुनिक बनाना था। यह संस्था विज्ञान सहित अन्य विषयों की पुस्तकों को अंग्रेजी से उर्दू भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित करती थी। 1877 ई0 में सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज की स्थापना की, जो कि मुस्लिमों के धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केन्द्र बना और आगे चलकर 1920 ई0 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित हुआ।
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
इसकी स्थापना 1866 ई0 में दादाभाई नौरोजी के द्वारा लंदन में की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के समक्ष भारतीयों का दृष्टिकोण रखना था। दादाभाई नौरोजी द्वारा लिखी किताब पावर्टी एण्ड द अनब्रिटिश रूल इन इंडिया से यह बात स्पष्ट है कि वे कुछ हद तक अंग्रेजों के भक्त थे और भारत में वैधानिक शासन की स्थापना करना चाहते थे। उनका कहना था, "हम दया की भीख नहीं माँगते, हम तो केवल न्याय चाहते है। ब्रिटिश नागरिक के समान ही अधिकारों का जिक्र नहीं करते, हम तो केवल स्वशासन चाहते है।"
सत्यशोधक समाज
इसकी स्थापना 1873 ई0 में ज्योतिबा फुले ने पुणे में की, जिसका उद्देश्य समाज के निचले वर्ग के लोग विशेषकर शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त कराना और उन्हें बराबरी का हक दिलाना था। इस संस्था ने सामाजिक दासता के विरूद्ध आवाज उठाई और सामाजिक न्याय की माँग में अपना विशेष योगदान दिया।
आर्य समाज
इसकी स्थापना 1875 ई0 में स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा बॉम्बे में की गई। इसके द्वारा निम्न कार्य किये गये –
• जाति प्रथा का विरोध।
• स्वदेशी शब्द को विशेष महत्व।
• स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार दिए जाने का समर्थन।
• जाति प्रथा का विरोध।
• स्वदेशी शब्द को विशेष महत्व।
• स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार दिए जाने का समर्थन।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
इसकी स्थापना 1885 ई0 में हुई थी और एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को इसका जन्मदाता माना जाता है। इसका पहला अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई0 को व्योमेश चन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ, जिसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और 30 दिसम्बर, 1885 ई0 को यह अधिवेशन समाप्त हो गया। (1885-1948) ई0 के बीच लगभग 56 अधिवेशन हुए, जिनमें से कुछ प्रमुख अधिवेशन के बारें में हम नीचे बात करने वाले है।
1st अधिवेशन – यह अधिवेशन 1885 ई0 को व्योमेश चन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में हुआ था, जिसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
12th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1896 ई0 को रहीम तुल्ला एम सयानी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' को गाया गया था।
22nd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1906 ई0 को दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें पहली बार 'स्वराज' शब्द का प्रयोग किया गया।
23rd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1907 ई0 को रास बिहारी घोष की अध्यक्षता में सूरत में हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उदारवादी (नरम) और उग्रवादी (गरम) दलों में विभाजित हो गई।
27th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1911 ई0 को विशन नारायण धर की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' को गाया गया था।
32nd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1916 ई0 को अम्बिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग की समितियों द्वारा बनाई गई संयुक्त योजना को स्वीकार कर लिया गया। इस योजना को 'कांग्रेस-लीग योजना (लखनऊ पैक्ट)' कहा गया, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया, जो आगे चलकर सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
33rd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1917 ई0 को एनी बेसेंट की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था। इस अधिवेशन की खास बात यह थी, कि पहली बार किसी महिला ने इसकी अध्यक्षता की थी।
39th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1923 ई0 को अबुल कलाम आजाद (सबसे युवा) की अध्यक्षता में दिल्ली में विशेष रूप से आयोजित किया गया, जिसमें 'स्वराज पार्टी' को मान्यता प्रदान की गई।
45th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1929 ई0 को जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ था, जिसमें नेहरू रिपोर्ट को निरस्त कर दिया गया और 'पूर्ण स्वराज' का संकल्प लिया गया। इसके अलावा कांग्रेस कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार भी दिया गया।
12th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1896 ई0 को रहीम तुल्ला एम सयानी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' को गाया गया था।
22nd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1906 ई0 को दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें पहली बार 'स्वराज' शब्द का प्रयोग किया गया।
23rd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1907 ई0 को रास बिहारी घोष की अध्यक्षता में सूरत में हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उदारवादी (नरम) और उग्रवादी (गरम) दलों में विभाजित हो गई।
27th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1911 ई0 को विशन नारायण धर की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था, जिसमें रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' को गाया गया था।
32nd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1916 ई0 को अम्बिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ था, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग की समितियों द्वारा बनाई गई संयुक्त योजना को स्वीकार कर लिया गया। इस योजना को 'कांग्रेस-लीग योजना (लखनऊ पैक्ट)' कहा गया, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया, जो आगे चलकर सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
33rd अधिवेशन – यह अधिवेशन 1917 ई0 को एनी बेसेंट की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था। इस अधिवेशन की खास बात यह थी, कि पहली बार किसी महिला ने इसकी अध्यक्षता की थी।
39th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1923 ई0 को अबुल कलाम आजाद (सबसे युवा) की अध्यक्षता में दिल्ली में विशेष रूप से आयोजित किया गया, जिसमें 'स्वराज पार्टी' को मान्यता प्रदान की गई।
45th अधिवेशन – यह अधिवेशन 1929 ई0 को जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ था, जिसमें नेहरू रिपोर्ट को निरस्त कर दिया गया और 'पूर्ण स्वराज' का संकल्प लिया गया। इसके अलावा कांग्रेस कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार भी दिया गया।
प्रार्थना समाज
इसकी स्थापना 1867 ई0 में केशवचंद्र सेन के द्वारा बम्बई में की गई, जिसके प्रमुख सदस्य आत्माराम पाण्डुरंग, महादेव गोविंद रानाडे, नारायण चंद्रावरकर और आर. जे. भंडारण थे। इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार है –
• जाति प्रथा का बहिष्कार करना।
• अछूतों के उद्धार में योगदान देना।
• स्त्रियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
• बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह का समर्थन करना।
• जाति प्रथा का बहिष्कार करना।
• अछूतों के उद्धार में योगदान देना।
• स्त्रियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
• बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह का समर्थन करना।
रामकृष्ण मिशन
इसकी स्थापना 1897 ई0 में स्वामी विवेकानंद के द्वारा बेलूर में की गई। इसके द्वारा निम्न कार्य किये गये –
• जनता की दशा सुधारने पर विशेष जोर।
• देश भर में नये शिक्षण संस्थाओं की स्थापना।
• देश विदेश में भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार।
• देश के नौजवानों द्वारा, देश पर गर्व करने की विचारधारा का प्रतिपादन।
• जनता की दशा सुधारने पर विशेष जोर।
• देश भर में नये शिक्षण संस्थाओं की स्थापना।
• देश विदेश में भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार।
• देश के नौजवानों द्वारा, देश पर गर्व करने की विचारधारा का प्रतिपादन।
मुस्लिम लीग
राष्ट्रीय चेतना को नष्ट करने के उद्देश्य से, 20 जुलाई, 1905 ई0 को लॉर्ड कर्जन द्वारा किये गये बंगाल विभाजन की घोषणा के परिणाम स्वरूप हिन्दू-मुसलमान एकता के बीच साम्प्रदायिक द्वेष उत्पन्न हुआ। 1 अक्टूबर, 1906 ई0 आगा खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक शिष्टमंडल तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिण्टो से मिला और मुसलमानों के लिए प्रान्तीय, केन्द्रीय और स्थानीय निकायों में विशिष्ट स्थिति की माँग की, जिसके लिए लॉर्ड मिण्टो ने उन्हें आश्वस्त भी कर दिया। 30 दिसम्बर, 1906 ई0 को सलीमुल्लाह के नेतृत्व में, ढाका में आयोजित बैठक में मुस्लिम लीग के स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों की निष्ठा को बढ़ाना और मुसलमानों के हितों की रक्षा करना था।
स्वराज्य पार्टी
इसकी स्थापना 1923 ई0 में चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर इलाहाबाद में की। इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार है –
• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर ही रहकर चुनावों में हिस्सा लेना।
• विधान परिषद में स्वदेशी सरकार के गठन की माँग को उठाना और माँग न मानने पर विधान परिषद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करना।
1923-24 ई0 के चुनाव में इस पार्टी के सदस्यों को विशेष सफलता मिली, किन्तु 1925 ई0 में चित्तरंजन दस की मृत्यु हो जाने पर स्वराज्य पार्टी धीरे-2 शिथिल होने लगी।
• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर ही रहकर चुनावों में हिस्सा लेना।
• विधान परिषद में स्वदेशी सरकार के गठन की माँग को उठाना और माँग न मानने पर विधान परिषद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करना।
1923-24 ई0 के चुनाव में इस पार्टी के सदस्यों को विशेष सफलता मिली, किन्तु 1925 ई0 में चित्तरंजन दस की मृत्यु हो जाने पर स्वराज्य पार्टी धीरे-2 शिथिल होने लगी।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन
असहयोग आन्दोलन के समाप्त होने के कुछ वर्षो के बाद, 1924 ई0 को शचीन्द्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद ने उत्तर प्रदेश के कानपुर में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था के सदस्यों द्वारा 9 अगस्त, 1925 ई0 को उत्तर रेलवे के लखनऊ-सहारनपुर-सम्भाग के काकोरी नामक स्थान पर ट्रेन में डकैती डालकर सरकारी खजाना लूटा गया। इस घटना के लिए, ब्रिटिश सरकार द्वारा 29 क्रान्तिकारियों को अभियुक्त बनाया गया, जिसमें से रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, रोशनलाल और राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी की सजा हुई। इस घटना के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक इस संस्था का विघटन हो गया।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के विघटन के बाद, 1928 ई0 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था की पहली क्रान्तिकारी गतिविधि सांडर्स हत्याकाण्ड थी, जिसमें इसके प्रमुख सदस्य भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए अंजाम दिया था और दूसरी क्रान्तिकारी गतिविधि सेन्ट्रल असेम्बली बम कांड थी, जिसमें इसके प्रमुख सदस्य भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने साथ मिलकर पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में अंजाम दिया था। 27 फरवरी, 1931 ई0 को चंद्रशेखर आजाद द्वारा इलाहाबाद के अल्फ्रेड नोबेल पार्क में स्वयं की पिस्टल से मौत और 23 मार्च, 1931 ई0 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को दी गई फाँसी के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक इस संस्था का विघटन हो गया।
इंडियन रिपब्लिकन आर्मी
इसकी स्थापना 1930 ई0 में सूर्यसेन के द्वारा बंगाल में की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य बंगाल प्रेसीडेंसी के अन्तर्गत आने वाले चटगांव शहर को ब्रिटिश नियंत्रण से अलग करना था। इसे राष्ट्रव्यापी विद्रोह शुरू करने के तौर पर एक कदम के रूप में देखा गया। इस संगठन के सदस्यों के पास हथियारों की कमी थी, जिसकी पूर्ति करने के लिए यह संगठन दो गुटों में विभाजित हुआ। 18 अप्रैल, 1930 ई0 को एक गुट ने गणेश घोष के नेतृत्व में दम्पारा की पुलिस लाइन में पुलिस शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया और दूसरे गुट ने लोकनाथ बल के नेतृत्व में सहायक सेना शस्त्रागार (अब पुराना सर्किट हाउस) पर कब्जा कर लिया। यह घटना चटगांव शस्त्रागार लूट के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दौरान ये गोला-बारूद की खोज में असफल रहे, लेकिन टेलीफोन और टेलीग्राफ के तारों को काटने और ट्रेन की आवाजाही को बाधित करने में सफल रहे। 22 अप्रैल, 1930 ई0 को चटगांव छावनी के पास जलालाबाद की पहाड़ियों में पुलिस ने घेराबंदी की, जिसमें इसके कुछ सदस्य मारे गये और कुछ सदस्य भागने में सफल रहे। नेत्र सेन की मुखबिरी पर 16 फरवरी, 1933 ई0 में सूर्य सेन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 12 जनवरी, 1934 ई0 में उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। बाद में धीरे-2 इस संगठन का विघटन हो गया।
फॉरवर्ड ब्लॉक
1939 ई0 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन के लिए महात्मा गाँधी, पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में सुभाष चन्द्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को 203 मतों से हरा दिया, जिसे महात्मा गाँधी ने इसे अपनी हार बताया और इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 सदस्यों में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। जब 1939 ई0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का त्रिपुरा में अधिवेशन हुआ, तब बुखार होने के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस वहाँ उपस्थित हुए, किन्तु महात्मा गाँधी और न उनके कोई साथी वहाँ उपस्थित हुए। इस अधिवेशन के बाद भी परिस्थितियां न बदलने पर सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और 3 मई 1939 ई0 को उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन की घोषणा कर दी, जिसके बाद इन्हें कांग्रेस पार्टी से बाहर निकाल दिया गया। फॉरवर्ड ब्लॉक एक ऐसा वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था, जिसका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्त्वों को एकसाथ लाना था, ताकि वह समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए भारत को पूर्ण स्वतंत्र करा सके।
आजाद हिन्द फौज
रासबिहारी बोस 1915 ई0 में जापान चले गए। वहाँ उन्होंने 1918 ई0 में शादी कर ली, जिस वजह से 1923 ई0 को उन्हें जापान की नागरिकता मिल गई। मार्च 1942 ई0 को जापान के टोक्यो शहर में रासबिहारी बोस ने एक सम्मलेन का आयोजन किया, जिसमें इंडिया इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना का निर्णय लिया गया। इस लीग का दूसरा सम्मलेन सिंगापुर के बैंकॉक शहर में जून, 1942 ई0 में आयोजित किया गया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और अध्यक्ष के रूप में इसकी कमान संभालने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय सुभाष चन्द्र बोस जर्मनी के बर्लिन शहर में थे। सितम्बर, 1942 ई0 को रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) का गठन किया, जिसमें उन भारतीयों को शामिल किया गया, जो जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में युद्धबन्दी बनाये गये थे। 1943 ई0 में जब सुभाष चन्द्र बोस जापान पहुंचे तो वहाँ उन्होंने टोक्यो से रेडियो प्रसारण के माध्यम से भारतीयों को सम्बोधित करते हुए कहा कि, “अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें भारत के अंदर व बाहर से स्वतंत्रता के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा।” सुभाष चन्द्र बोस के इस भाषण से रासबिहारी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिन्द फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) का नेतृत्व सौंप दिया, जिसके अगले ही दिन सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने सुभाष चंद्र बोस ने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में आजाद हिन्द फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) को सम्बोधित किया और “दिल्ली चलो” का नारा दिया।
उपरोक्त संगठनों अथवा संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ और संगठनों अथवा संस्थाओं के बारें में नीचे बताया गया है, जो कि इस प्रकार है।
संगठन |
संस्थापक |
एशियाटिक सोसाइटी (1784, कलकत्ता) | विलियम जोंस |
आत्मिय सभा (1815, कलकत्ता) | राजाराम मोहन राय |
तत्वबोधिनी सभा (1839, कलकत्ता) | देबेन्द्रनाथ टैगोर |
भारतीय ब्रह्म समाज (1866, कलकत्ता) | केशवचंद्र सेन |
थियोसोफिकल सोसाइटी | मैडम एच. पी. ब्लावत्सकी (1875, न्यूयार्क), कर्नल एच (1882, चेन्नई) |
साधारण ब्रह्म समाज (1878, कलकत्ता) | आनंद मोहन बोस |
सेवा सदन (1885, बॉम्बे) | बेहरामजी मेरवानजी मालाबारी |
भारतीय सुधार समिति (1887, इंग्लैंड) | दादाभाई नौरोजी |
देव समाज (1887, लाहौर) | शिवनारायण अग्निहोत्री |
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (1888, बॉम्बे) | गोपाल कृष्ण गोखले |
सनातन धर्म सभा (1895) | दीनदयाल शर्मा |
अभिनव भारत सोसायटी (1904, लंदन) | विनायक दामोदर सावरकर |
इंडिया हाउस (1904, लंदन) | श्यामजी कृष्ण वर्मा |
इंडियन होमरूल सोसाइटी (1905, लंदन) | श्यामजी कृष्ण वर्मा |
गदर पार्टी (1913, सैन फ्रैंसिस्को) | लाला हरदयाल, रामचंद्र, बरकतुल्ला |
महाराष्ट्र होमरूल लीग (1916, पुणे) | बाल गंगाधर तिलक |
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (1916, बनारस) | मदन मोहन मालवीय |
अखिल भारतीय होमरूल लीग (1916, मद्रास) | एनीबेसेंट |
खुदाई खिदमतगार अथवा सर्वेंट ऑफ गॉड (1930) | खान अब्दुल गफ्फार खान |
पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी (1945, बम्बई) | भीम राव अम्बेडकर |
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