प्रस्तावना – संस्कृति क्या है? इस विषय में न कोई सीमा निश्चित है, न ही इसकी कोई व्यवस्थित परिभाषा है। वास्तव में संस्कृति उन सब गुणों का समूह है जिन्हें मनुष्य, शिक्षा तथा प्रयत्नों द्वारा प्राप्त करता है और जिनके आधार पर मनुष्य का व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन विकसित होता है। संस्कृति का विकास जातीय चेतना में होता है। इसी चेतना से जीवन में वे सब चीजें आती है जिनका सम्बन्ध काव्य, धर्म और दर्शन से होता है। संस्कृति का विकास मुख्य रूप से कला एवं चिन्तन की प्रतिकमूलक कृतियों में होता है किन्तु आंशिक रूप में विवाह, शासन, शिक्षा आदि सामाजिक संस्थाएँ भी उसके विकास में सहायक होती है।

भारतीय संस्कृति का मूल – देश में धर्म और संस्कृति का गहरा सम्बन्ध रहा है। बौद्ध, जैन आदि अनेक सम्प्रदाय यहाँ चले परन्तु इन सब सम्प्रदायों ने हिन्दू संस्कृति की विशाल धारा में कोई कटाव न करके उसे और अधिक पुष्ट तथा प्रवहनशील ही बनाया है। शक, हूण, यवन, मुसलमान तथा ईसाई आदि अनेक विदेशी जातियाँ यहाँ आई किन्तु हिन्दू संस्कृति की यह धारा निरन्तर अबाध गति से आगे बढ़ती रही है। वास्तव में ये स्रोत इतने गहरे है जिन्हें कोई दूसरी संस्कृति बाधित नहीं कर सकी। बाहर से आई संस्कृति या तो इसमें मिलकर इसी के रंग में मिल गई या वे इस संस्कृति से कुछ लेन-देन करके अपनी पृथक सत्ता के रूप में इस देश की धरती पर बहने लगी।

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ – भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का व्यापक रूप मिलता है। संसार के किसी अन्य धर्म या जाति में जीवन की ऐसी विविधता या व्यापकता दिखाई नहीं पड़ती है। बौद्ध, जैन आदि अनेक सम्प्रदाय यहाँ पैदा हुए किन्तु उनके मूल्यवान विचारों और शिक्षाओं को आत्मसात कर इस संस्कृति ने उदारता का परिचय दिया। विविधता और समन्वय की भावना की प्रधानता इस संस्कृति में प्रारम्भ से रही है। हिन्दू संस्कृति का जैसा सर्वांगीण विकास हुआ वैसा अन्य संस्कृतियों का नहीं हो सका। भारतीय संस्कृति का रूप अत्यन्त विचित्रतापूर्ण, विविधात्मक तथा जटिल है। यहाँ के आदर्श स्त्री-पुरूषों की कल्पनाओं में, जीवन की अनेक रूपताओं में, अनेक पन्थों और सम्प्रदायों की उत्पत्ति तथा प्रचार में इस संस्कृति की विविधता तथा व्यापकता के प्रमाण मौजूद है।

धर्म की प्रधानता – भारतीय संस्कृति का मूल आधार धर्म है। धर्म भारतीय जीवन दर्शन का प्राण है। इस संस्कृति में आध्यात्मिक भावों की अधिकता है। हमारे यहाँ मन और शरीर, दोनों की शुद्धि पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्य का बाहर और भीतर जब तक दोनों शुद्ध नहीं होते, तब तक वह गलत को सही मानता है। भारतीय संस्कृति की एक और विशेषता अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ाना है। इस संस्कृति के अनुसार मनुष्य को देव ऋण, ऋषि ऋण तथा पितृ ऋण को चुकाए बिना साधना का अधिकारी नहीं समझा जाता है।

समानता की भावना – भारतीय संस्कृति की एक महान विशेषता है – समानता की भावना। 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' संसार के प्राणीमात्र में अपने मन के अनुभव करना इस संस्कृति का मुख्य सिद्धान्त है। 'उदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम्' के सिद्धान्त के आधार पर यह संस्कृति सारे विश्व को एकता के सूत्र में बांधती है और 'ईशावस्यामिदं सर्वम्' के सिद्धान्त के आधार पर सम्पूर्ण प्राणी जाल जगत के प्रति सम्मान और उदारता की भावना जगाने का प्रयत्न करती है।

समन्वय की भावना – भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी समन्वय भावना है। इस संस्कृति की इस विशेषता ने ही इसे अजर-अमर बना दिया है। भारतीय संस्कृति की इस विशेषता के कारण ही हजारों वर्ष तक विदेशी संस्कृतियों के शासन में रहकर भी इस संस्कृति की धारा कभी मन्द या उथली नहीं हो पाई है। संसार में अनेक संस्कृतियाँ विकसित हुई और मिट गई, उनका नाम-निशान भी आज बाकी नहीं।

सहिष्णुता की भावना – भारतीय संस्कृति की एक अन्य विशेषता सहिष्णुता और उदारता की परम्परा रही है। वेदों मे उल्लेख है कि "शक्ति तो एक ही है किन्तु उसके स्वरूप अनेक।" अन्य शब्दों मे धार्मिक विद्वेष को हमारे देश में कोई स्थान नहीं दिया गया। प्राचीन भारतीय सम्राटों ने कभी भी अन्य धर्मों के अनुयाइयों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाई और खुद अलग धर्म को मानते होते हुए भी अन्य धर्म का आदर व सम्मान किया और उन्हें भारत की भूमि पर पनपने दिया। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मौर्य वंश के शासन काल में देखने को मिलता है।

उपसंहार – इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा सर्वोन्नत संस्कृति है। वास्तव में यह एक महासागर है जिसमें विभिन्न दिशाओं से अनेक संस्कृतियाँ आकर मिल गयी। इस संस्कृति ने सदैव संसार को कर्तव्य, संयम, त्याग और प्रेम का मार्ग दिखाया है। भारतीय संस्कृति, व्यक्ति में उदारता की भावना जगाकर उसके व्यक्तित्व को निखारती है, महान कार्यों की ओर अग्रसर करती है और साथ ही समष्टिगत भावनाओं को जन्म देती है। 'जियो और जीने दो' इस संस्कृति का मुख्य सन्देश है।