जीवन को सुखी और सम्पन्न बनाने के लिए सबसे जरूरी है कि शरीर को स्वस्थ रखा जाए। स्वस्थ शरीर से ही मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी संसाधन जुटा सकता है। अस्वस्थ मनुष्य अपने दैनिक क्रिया-कलाप भी नहीं कर सकता, पारिवारिक और समाजिक कार्य का तो कहना ही क्या? उसकी बुद्धि भी सही से काम नहीं करती, क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। बिना स्वस्थ शरीर के धर्म-कर्म असम्भव है। "शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्", अर्थात् शरीर को स्वस्थ रखने का सर्वप्रथम साधन है - व्यायाम।

शरीर के जिस अंग से काम नहीं लिया जाता, वह कार्य करने में अक्षम और निकम्मा हो जाता है, इसलिए यह अनिवार्य हो जाता है कि हम प्रतिदिन नियमपूर्वक कुछ ऐसी क्रियाएँ करें जिससे शरीर का प्रत्येक अंग गतिशील हो, कुछ काम करें और हष्टपुष्ट व स्वस्थ रहे। इसी प्रकार उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो नियमित श्रम कार्य किया जाता है, उसी को व्यायाम कहते है। व्यायाम शब्द का अर्थ है - 'विशेष आयाम' अर्थात शरीर को स्वस्थ एवं पुष्ट बनाये रखने के लिए किया गया विशेष प्रकार का श्रम। स्वास्थ्य की रक्षा के लिए किये गए सभी प्रकार के श्रम कार्य चाहे वह खेल हो या दण्ड बैठक, भाग-दौड़ हो या योगासन, व्यायाम के अन्तर्गत आते है।

जब हम 'व्यायाम' शब्द का प्रयोग करते है, तब हमारा तात्पर्य केवल उन श्रम क्रियाओं से होता है जो शरीर को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाये रखने के लिए की जाती है। इस प्रकार के शारीरिक व्यायाम को मुख्यत: दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है (1) सामूहिक व्यायाम (2) एकाकी व्यायाम

(1) सामूहिक व्यायाम - ये वे व्यायाम होते है, जिन्हें दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर सामूहिक रूप में करते है। इस वर्ग में मुख्यत: खेल-कूद आते है। रस्साकशी, कुश्ती, तैराकी, कबड्डी आदि भारतीय खेल-कूद है। इनमें बहुत सस्ता और उत्तम व्यायाम हो जाता है। इनके अतरिक्त हॉकी, फुटबॉल, बॉलीबॉल, क्रिकेट आदि विदेशों से आये आधुनिक खेलों में भी अच्छा व्यायाम हो जाता है।

(2) एकाकी व्यायाम - इस प्रकार के व्यायाम अकेले एकांत में किये जाते है। दण्ड बैठक लगाना, मुगदर घूमाना, दौड़ना, घूमना और योगासन करना आदि इस श्रेणी के उत्तम व्यायाम है।

अति किसी भी काम की अच्छी नहीं होती। व्यायाम भी तब तक ही हितकर होता है, जब तक वह उचित मात्रा में किया जाये। अधिक मात्रा में किया हुआ व्यायाम उसी प्रकार हानिकारक होता है जैसे जरूरत से अधिक मात्रा में किया हुआ भोजन। सभी व्यक्ति सब प्रकार के व्यायाम नहीं कर सकते। अपनी अवस्था, स्वास्थ्य और रूचि के अनुसार व्यायाम का चयन कर लेना बहुत आवश्यक है, जैसे बच्चों के लिए हल्के खेल-कूद, युवकों लिए कबड्डी, फुटबॉल आदि खेल या दण्ड बैठक, मुदगर घुमाना आदि और बूढ़ो के लिए भ्रमण अधिक उपयोगी हो सकते है। प्रत्येक व्यक्ति की व्यायाम की मात्रा भी अपने अनुरूप तय कर लेनी चाहिए। इसकी एक अच्छी पहचान यह है कि व्यायाम तब तक करना लाभदायक होता है, जब तक थकान न अनुभव हो और साँस न फूलने लगे। जब आदमी थक जाये और साँस फूलने लगे, इसके पश्चात किया गया व्यायाम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

व्यायाम करना हमारे शरीर के लिए उतना ही जरूरी है, जितना भोजन करना या पानी पीना। नियमित रूप से व्यायाम करने से न सिर्फ हम शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी फिट रहते है। प्रतिदिन व्यायाम करने से होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार है -
• नियमित व्यायाम करने से मांसपेशियां तो स्वस्थ रहती ही हैं, साथ ही शरीर में खून का संचार भी बेहतर ढंग से हो पाता है।
• नियमित रूप से व्यायाम करने से मेटाबॉलिज्म बेहतर होने के साथ ही कैलरी भी तेजी से बर्न होती है और वजन नियंत्रण में रहता है।
• व्यायाम शरीर ही नहीं बल्कि दिमाग को भी तेज रखने में उपयोगी साबित होता है। तनाव, सिर दर्द और डिप्रेशन जैसी कई समस्याओं को नियमित व्यायाम की मदद से कम या ठीक किया जा सकता है।
• रोजाना व्यायाम करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी नियंत्रित किया जा सकता है। व्यायाम करने से शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घट जाती है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है।

मनुष्य चाहता है कि वह जीवन में सफलता प्राप्त करे, स्वस्थ एवं सुखी जीवन व्यतीत करे, समाज में उसका सम्मान बढ़े और इस लोक व परलोक में उसका कल्याण हो तो जरूरी है कि वह सच्चे चरित्र के साथ नियमित व्यायाम करे। व्यायाम के द्वारा ही मनुष्य शक्ति-साधन सम्पन्न कर्मठ एवं सफल नागरिक बन सकता है। यदि स्वास्थ्य जीवन का आधार है तो इसकी कुंजी 'व्यायाम' है। किसी ने ठीक कहा है - "शक्ति बढ़े, फुर्ती रहे, चोट न अधिक सताय। अन्न पचे, चंगा रहे, कसरत सदा सहाय।।" अर्थात् व्यायाम करने से शरीर की ताकत भी बढ़ती है व फुर्ती भी रहती है और शरीर में कोई विकार हो तो वह भी ज्यादा सताती नहीं। शरीर को भोजन पचाने और स्वस्थ रखने में कसरत (व्यायाम) हमेशा सहायता करता है।