कृषि भारत का मुख्य उद्योग है। यहाँ की 65% जनता आज भी खेती पर निर्भर है। यह किसानों का देश है और सभी उद्योग खेती पर निर्भर है। खेती और किसान की दशा ही भारत की दशा है, पर यह खेद की बात है कि भारत में किसान की जैसी सोचनीय दशा है वैसी किसी और देश के किसानों की नहीं। अँग्रेजों के शासनकाल में किसानों और खेती के बारें में ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया गया। सोचने की उन्हें आवश्यकता भी नहीं थी। 15 अगस्त सन् 1947 को परतंत्रता के काले बादलों को चीरता हुआ स्वतंत्रता का सूर्य उदित हुआ। उसकी किरणों के प्रकाश में भारत के नेताओं ने भारत के किसानों को देखा और तब से निरन्तर भारत की सरकार किसान और खेती की उन्नति के लिए प्रयत्नशील है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नि:संदेह किसान की दशा में गुणात्मक सुधार हुआ है, तथापि आज भी किसान की स्थिति संतोषजनक नहीं है। अब भी किसान का जीवनस्तर व्यापारी और वेतनभोगियों की अपेक्षा बहुत नीचा है। विकास उतना नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। आज भी कृषक, विशेष रूप से सामान्य और छोटा कृषक, सुखी और साधन-सम्पन्न नहीं है।

आज भी किसान अधिकतर अशिक्षित है। किसानों के जो बच्चे पढ़ भी गए है या पढ़ रहे है, वे खेती से दूर भागते है, नौकरी खोजते फिरते है। खेती करना वे अपने लिए अपमान की बात समझते है। यह भावना देश और स्वयं किसान के लिए बहुत घातक है। इसी का परिणाम यह है किसान अशिक्षित है। अशिक्षित कृषक खेती के नए तरीकों और साधनों से जानकार नहीं हो पाता है। किसान को सरकार अनेक सुविधाएँ देती है, परन्तु अशिक्षित और रूढ़िवादी किसान उनसे लाभ नहीं उठा पाता। कुछ स्वार्थी कर्मचारी है जो घूस लेकर काम करते है, सामान्य किसान उनकी मनचाही माँग पूरी नहीं कर पाता, इस कारण उसे उन सरकारी सुविधाओं से वंचित रह जाना पड़ता है।

सूखा और बाढ़ की समस्याएँ भी कुछ कम जटिल नहीं है। किसान की तैयार फसलें प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार होकर रह जाती है। इसके अतिरिक्त बिजली की प्राप्ति में कमी, करों का अधिभार, अच्छा बीज एवं खाद आदि का न मिल पाना किसान की अनेक कठिनाइयां है जो उसकी उन्नति के मार्ग में बाधक बनी हुई है।

अशिक्षा किसान के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। सरकार शिक्षा प्रसार के लिए अथक प्रयास करा रही है। किसान को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को पढ़ाये-लिखाये और उनके दिमाग से यह भावना निकले कि शिक्षा नौकरी के लिए होती है। सरकार को भी चाहिए कि ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करे कि जिससे आने वाली पीढ़ी में स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता और अपने पेशे के प्रति प्रेम एवं ईमानदारी की भावना जागे। "खेती हमारे देश का सर्वोत्तम उद्यम है"- इस प्रकार की भावना जब तक किसान और उसकी संतान में न जागेगी तब तक किसान को हीन भावना सताती रहेगी। वह आगे नहीं बढ़ पायेगा।

शिक्षित किसान, बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकता है, उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है, परन्तु उसे चाहिए कि जिस कार्य के लिए फिर से ऋण लेने की विधि सरल कराये और गाँव-2 में बैंकों की शाखाएँ फैला दे। सरकार को चाहिए कि बैंकों और कृषि कार्यक्रमों में ऐसे ग्रामीण नवयुवकों की नियुक्ति करे, जिन्हें ग्रामीणों के प्रति सहानुभूति हो और जो ग्रामीण समस्याओं को समझ सकते हो।

सूखा और बाढ़ की समस्याओं पर काबू पाने के लिए सरकार प्रयत्नशील है तथापि उसमें तेजी लाने की आवश्यकता है। जब तक बाढ़ से बचाव न होगा और किसान के प्रत्येक खेत को सिंचाई का जल उपलब्ध होगा, तब तक किसान का उत्थान कोरा स्वप्न ही बना रहेगा। अच्छी खाद, उत्तम बीज और ट्रैक्टर ट्रॉली आदि खेती के नवीन मशीनी साधन हर किसान को सुलभ हो, ऐसे सरकार को प्रयत्न करने चाहिए। बिजली, प्रकाश और यातायात के साधनों में भी सुधार होना आवश्यक है।

किसान को भी यह बात भली-भाँति समझ लेनी चाहिए कि सरकार चाहे कितने ही उपाय क्यों न करे, जब तक किसान स्वयं सचेत न होगा, जब तक वह अपने पेशे के प्रति ईमानदार न होगा, जब तक उसे अपने उद्यम पर गौरव की अनुभूति न होगी और जब तक उसके बच्चे पूरी तरह शिक्षित न होंगे तब तक उत्थान और विकास की बात स्वप्न ही बनी रहेगी। वैसे किसान योगी है, अन्नदाता है, परिश्रमी है। उसका जीवन त्याग एवं तपस्यामय जीवन है -
"कृषक अन्नदाता होकर भी, सहता अत्याचार है।
परसेवा उपकार त्यागमय, इसका सत्संसार है।।"